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कल्याणपथ
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अनुशीलनमे निरत देखे जाते थे, जिसके प्रसादसे वे अपनी अहिसात्मक साधनाके क्षेत्रमे सफलतापूर्वक उत्तीर्ण होते रहे है।
अपने असहयोग-आन्दोलनको आरभ करनेके कुछ समय पूर्व महावीर जयतीके समारभका अध्यक्ष बन बापूने अहमदाबादमे कहा था, "जैनधर्म अपने अहिंसा-सिद्धान्तके कारण विश्व-धर्म होनेके पूर्णतया उपयुक्त है”। सन् १९४७ मे एशिया महासम्मेलनके सदस्योके समक्ष प्रकाण्ड विद्वान् डा० कालिदास नाग पूर्व मत्री रायल एशियाटिक सोसाइटी वगालने बडे महत्त्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए थे, कि 'आजकी राजनीति सरक्षणात्मक नियमोसे पूर्णतया पृथक् होकर मानवजातिके ध्वसकी धमकी दे रही है। हम कुछ वर्षों या युगो पर्यन्त और धोखा दे सकते है, कितु हम इतिहासके निर्मम निर्णयसे नहीं बच सकते है। अनेक महान् राष्ट्र, राज्य तथा साम्राज्य पराजित हो चुके अथवा वे पुरातन विनष्ट वस्तुओकी श्रेणीमे समाविष्ट हो गए है। यदि हम यह आशा करते है तथा चाहते है कि हमारा विनाश न हो, और हम मानव सभ्यताके समुदायको कुछ समर्पण करे, तो हमे जैन
$. "Politics totally divoiced from the laws of survival is threatening man-kind with utter extinction. We may go an bluffing for a few years or decades more, but we cannot escape the relentless verdict of the history. Many great nations, kingdoms and empires have already vanished or have encumbered the gallery of dead antiquities. But if we hope and aspire to continue and to contribute to the stock of human civilization, ne must agree with the Jain pioneers and accept non-violence as the basic principle of our existence" ____ "International Umversity of Non-violence, An Appeal" p3