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जैनशासन
“यशोवधः प्राणिवधाद् गरीयान् ।"
___-यशस्तिलक। भगवन्जिनसेन बाहुवलि स्वामीके द्वारा युद्धमे तत्पर भरतेश्वरके दूतसे युद्धके लिये अपनी उत्कण्ठा व्यक्त करते हुए कहते है
"कलेवरमिदं त्याज्यम् अर्जनीयं यशोधनम् । जयश्रीविजये लभ्या नाल्पोदर्को रणोत्सवः ॥"
-महापु० पर्व ३५, १४४ । यह गरीर तो त्याज्य है। यदि मृत्यु होती है तो कोई भय की बात नहीं है, यगोधनकी प्राप्ति तो होगी। यदि विजय हुई तो जयश्री प्राप्त होगी। इस प्रकार यह रणोत्सव महान् परिणामवाला है। स्वाधीनताके विषयमे वादीसिहसूरिका कथन चिरस्मरणीय है"जीवितात्तु पराधीनात्, जीवानां मरणं वरम् ।
-क्षत्रचूडामणि १, ४० । पाडित्यप्रदर्शनके क्षेत्रमे भी जैन ग्रन्थकारोने अपूर्व कार्य किया है। महाकवि धनंजयका राघवपाडवीय-द्विसधान अनुपम पाण्डित्यपूर्ण कृति है। प्रत्येक श्लोकमे श्लिप्टार्थके बलपर रामायण और महाभारतकी कथा वर्णित की गई है। रचना अत्यन्त मधुर, सरस तथा कवित्वपूर्ण है। सप्तसवान काव्यमे भगवान् ऋषभदेव, गान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर, राम तथा कृष्ण इन ७ महापुरुषोका चरित्र निवद्ध है। प्रत्येक श्लोक के सात सात अर्थ पाये जाते है। इसी प्रकार २४ तीर्थंकरोके चरित्रयुक्त चतुर्विगतिमधान नामका काव्य है। स्वामी समन्तभद्रके स्तोत्रकाव्य जिनगतक एकाक्षरी यक्षरी आदि चित्रालकारभूषित अपूर्व रचना
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१ "लोके पराधीनं जीवितं विनिन्दितम् । निजबलविभवसमाजितमृगेन्द्रपदसंभावितस्य मृगेन्द्रस्येव स्वतंत्रजीवनमविनिन्दितमभिवन्दितमनवद्यमतियघमिति ॥"-जी० च० का०। '