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जैनशासन
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निर्माण की थी। जैन वाङ्मयका विशेष रसपानके कारण तन्मय होने वाले डा० हर्टल कितनी सजीव भाषामे अपने अन्त करणके उद्गारोको व्यक्त करते है – “Now what would Sanskrit poetry be without the large Sanskrit literature of the Jains. The more I learn to know, the more my admiration rises. " - " जैनियोके इस विशाल संस्कृत साहित्यके
अभाव संस्कृत कविताकी क्या दशा होगी ? जैन साहित्यका जैसे जैसे मुझे ज्ञान होता जाता है, वैसे-वैसे ही मेरे चित्तमे इसके प्रति प्रशसाका भाव वढता जाता है।” जैन साहित्यके विषय मे प्रो० हाप्किन्स लिखते है - " जैन साहित्य, जो हमे प्राप्त हुआ है, काफी विशाल है। उसका उचित अग प्रकाशित भी हो चुका है। इससे जैन और बौद्ध धर्मो के सम्बन्धके वारेमे पुरातन विश्वासोके सशोधनकी आवश्यकता उत्पन्न होती है। "" जेम्स विसेट प्रिट नामक अमेरिकन मिशनरी अपनी पुस्तक “ India and its Faiths" ( पृ० २५८ ) मे लिखते है - " जैन धार्मिक ग्रंथोके निर्माणकर्ता विद्वान् वडे व्यवस्थित विचारक रहे है । वे गणितमे विशेष दक्ष रहे है । वे यह बात जानते है, कि इस विश्वमे कितने प्रकारके विभिन्न पदार्थ है। इनकी इन्होने गणना करके उसके नक्शे बनाए है । इससे वे प्रत्येक वातको यथास्थान बता सकते है ।" यहा लेखककी
3. The Jain literature left to us is quite large and enough has been published alieady to make it necessary to revise the old belief in regard to the relation between Jainism and Buddhism
-The Religions of India P. 286.
"The writers of the Jain sacred books are very systematic thinkers and particularly 'strong' on arithmetic. They know Just how many different