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जैनशासन
- वचनोमे वह पाया जाता है।” इस पक्तिका अर्थ वेदके व्याख्याकार सायण के शब्दोमे यह है-“हे अर्हन् , तुम इस विशाल विश्वकी रक्षा करते हो।" इस वाक्यका भाव भी जैनियोके मूलभूत जीवदया या अहिंसा सिद्धान्तके अनुकूल है।
जैनशासनके आराधकोके इष्ट देव 'अर्हन्त' है, यह बात सर्वत्र रूट है। यही कथन हनुमनाटकके इस प्रसिद्ध पचसे स्पष्ट होता है
"यं शैवाः समुपासते शिव इति ब्रह्मेति वेदान्तिनो बौद्धा बुद्ध इति प्रमाणएटयः कर्त्तति नैयायिकाः । अर्हन्नित्यथ जैनशासनरताः कर्मेति मीमांसकाः
सोऽयं वो विदधातु वाञ्छितफल त्रैलोक्यनाथः प्रभुः ॥ सस्कृतके पुरातन नाटक मुद्राराक्षस का एक जीवसिद्धि नामका पात्र दिगम्बर जैन मुनिके रूपमे आकर कहता है' 'सासणमलिहन्ताणं पडिवज्जह मोहवाहिवेज्जाणं ।
जे मुत्तमात्तकडुनं पच्छा पत्थं उबदिति ॥"-अंक ४ अरहतोके शासनको स्वीकार करो, कारण वे मोहव्याधिके निवारणमे वैद्य है। उनकी औषधि प्रारम्भमे कटक, किन्तु पश्चात् लाभप्रद होती है। इस प्रकार अनेक प्रमाणोसे यह निर्णय सिद्ध होता है, कि 'अर्हन्त शब्द जैनधर्मके इप्ट देवका द्योतक है। १ शैवलोग जिसकी 'शिव' कहकर उपासना करते है। वेदान्ती
लोग 'ब्रह्म', बौद्ध लोग 'बुद्धदेव', प्रमाणप्रवीण नैयायिक लोग 'कर्ता', जैनधर्मावलम्बी 'महन्त' और मीमांसक लोग 'कर्म रूपमे जिसे पूजते है, वह त्रिलोकनाथ भगवान् श्रापको मनो
कामना पूर्ण करे। २ "सर्वज्ञो जितरागादिदोषस्त्रैलोक्यपूजितः। __यथास्यितार्थवादी च देवोऽहन परमेश्वरः ॥"
A Superior divinity with the Jainas vide Apte's Sanskrit English Dic p 55