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आत्मजागतिके साधन - तीर्थस्थल
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आत्मामें वीतरागताका अपूर्व प्रभाव उत्पन्न होता है । वहाका सजीव प्रभाव हृदयपटलपर एक वार भी अकित होकर सदा अमिट रहता है । "
बुदेलखडमे पन्ना रियासतके अन्तर्गत खजुराहाके जैन मदिरोकी उच्च और मनोज कला भी दर्शनीय है । भगवान् शान्तिनाथकी २० हाथके लगभग उन्नत प्रतिमा बहुत सुन्दर है । वहाकी स्थापत्यकला बहुत भव्य है ।
जिस प्रकार अतिशय विशेष होनेके कारण कोई स्थल अतिगय-क्षेत्र रूपमे पूजा जाकर साधकके अन्त करणमे भव्य - भावनाओको सर्वाद्धत
१ जैन सिद्धान्त- भास्कर भाग ८ किरण २ से ज्ञात होता है कि पर्वत उत्तर-दक्षिण १ मील लम्बा, पूर्व-पश्चिम ६ फर्लांग चौडा है । पर्वत की चढाई सरल हैं । मन्दिर लगभग ८ सौ वर्ष प्राचीन कहे जाते हैं । भगवान् ऋषभदेवकी मूर्ति जटायुक्त है। वहां तीर्थंकर बाहुबली, शासन-देवता, मुनि आर्यिका श्रावक तथा श्राविका की मूर्तिया भी मिलती है । कहीं-कही दम्पतिका चित्र वृक्षके नीचे खड़ा हुआ पाया जाता है और प्रत्येकको गोदमें एक-एक बच्चा है । पुरातत्त्व विभागके तत्कालीन सुपरिन्टेन्डेन्ट श्रीयुत दयाराम सहानी एम० ए० ने इसका अर्थ यह सोचा है - 'ये बच्चे अवसर्पिणीके सुषम-सुषम समयकी प्रसन्न जोड़ियांयुगलिये है और जिसके नीचे स्त्री-पुरुष खड़े है वह वृक्ष कल्पद्रुम है; जिससे उस जमाने में मनुष्य वर्गकी सभी इच्छाएँ पूर्ण होती थीं।' पुराणोमें उत्तम भोगभूमिका जो वर्णन है उससे विदित होता है कि माता-पिता सन्ततिका सुख - दर्शन करनेके पूर्व ही छींक और जम्हाई ले शरीर परित्याग कर स्वर्ग लोकको यात्रा करते थे । इस प्रकाश सहानी महाशयकी सूझ चिन्तनीय हो जाती है। शिलालेखोकी दृष्टिसे पर्वत महत्त्वपूर्ण है । २०० शिलालेखो में से १५७ ऐतिहासिक महत्त्व रखते हैं | नागरी अक्षरोके क्रमिक विकासको जानने के लिए ये लेख बहुत काम है ।
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