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जैनशासन
लगा । बानर शाकाहार करनेवाला शक्ति स्फूर्ति - युक्त जीवधारी है । वह अहसा, शक्ति और स्फूर्तिका प्रतीक है, इस कारण प्रतीत होता है कि हनुमानजीने कपिको अपनी ध्वजाका चिह्न बनाया । आचार्य रविषेणके शब्दोमे यह समझना मिथ्या है कि हनुमान् बदर थे । वे सर्वगुण सपन्न महापुरुष थे। उनके पिताका नाम पवनजय था। वे भी महापुरुष थे । पवन - वायुसे मानवकी उत्पत्ति वैज्ञानिक दृष्टि विशिष्ट जैनधर्ममे स्वीकार नही की गई है।
भीम, अर्जुन, युधिष्ठिर इन तीन पाडवोने पालीताणाके ( गुजरात प्रातके) शत्रुञ्जय पर्वतपर तपश्चर्या की थी । दिगम्बरमुद्रा धारण कर कर्म - शत्रुओपर भी विजय प्राप्त की थी । प्राकृत निर्माणकाण्डमे लिखा है
"पंडुसु तिणि जणा दविर्णादाण अटुकोडीओो । सत्तुंजयगिरिसिहरे णिव्वाणगया णमो तेसि ॥ ६ ॥" भैया भगवतीदासजीने इसको इन शब्दोमे स्पष्ट समझाया है"पांडव तीन द्रविड़ राजान । आठ कोडि मुनि मुकति पयान । श्रीशत्रुञ्जय गिरिके सीस । भाव सहित वदो निसदीस ॥ ७ ॥ पालीताणामे तीन हजारसे अधिक जैन मन्दिर है, जिससे शत्रु जय क्षेत्रकी मनोज्ञता बढ गई है। उसे मन्दिरोका नगर भी कहते है ।
जिस स्थानपर विशेष प्रभावशाली मूर्ति, मंदिर आदि होते है, उसे अतिशय क्षेत्र कहते है । इनकी सख्या लगभग सौसे अधिक है । किसी स्थानपर साधकोको अथवा भक्तोको विशेष लाभ दिखायी दिया, उसे अतिशय क्षेत्र कहते है । ऐसे अतिशय क्षेत्र नवीन भी बन जाते है ।
जयपुर राज्यमे श्री महावीरजी नामक स्टेशन है । यहाके भगवान् महावीरकी मूर्तिका बडा प्रभाव सुना जाता है। हजारो यात्री वहा वदना को जाते है। मीना और गुजर नामक ग्रामीण लोग हजारोकी सख्यामे महावीर भगवान्की ऐसी भक्ति करते है, जो दर्शकोको चकित करती है।