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________________ जैनशासन सम्मेदशिखर पर्वतपर यात्री लोग मुक्त होनेवाले आत्माओके चरण चिन्ह (Foot Print) की पूजा करते रहे है । श्वेताम्बर जैनोकी ओरसे कुछ टोकोके चरण चिन्ह बदल दिए गए थे, जिससे प्रीवी कौसिल में दिगम्बर जैनियोने यह आपत्ति उपस्थित की थी कि चरणोकी पूजा हमारे यहा वर्जित है क्योकि वे खडित मूर्तिके अग सिद्ध होते है । प्रवी कौन्सिलके जजोका निम्न वर्णन पाठकोको विशेष प्रकाश प्रदान करेगा २५४ “श्वेताम्बरी लोगोने जो चरणोकी स्वय पूजा करना पसन्द करते हैदूसरे तरह के चिन्ह बना लिए है, जिसे नमूना अथवा फोटो नही होनेसे, ठीक तौरपर बताना बहुत सरल नही है, जो अगूठेके नखोको बताते है और जिन्हें पैरके एक भागका सूचक समझना चाहिए । दिगम्बरी लोग इसे पूजनेसे इनकार करते हैं, क्योकि यह मनुष्यके शरीरके पृथक् अगका सूचक है। दोनो मातहत अदालतोने यह फैसला किया, कि श्वेताम्बरोका यह कार्य, जिसमे उन्होने तीन मन्दिरोमे उक्त प्रकारके चरण बनाए, एक ऐसी बात है कि जिसके बाबत शिकायत करनेका दिगम्बरियोको हक है।" - ( फैसलेका हिन्दी अनुवाद पृ० १७ ) यह पर्वत तीर्थकरोकी निर्वाणभूमि होनेसे विशेष पूज्य माना जाता है इसके सिवाय अगणित साधकोने वहा रह कर राग, द्वेष और मोहका नाश कर साम्यभावकी सहायता ले मुक्ति प्राप्त की, इस कारण जैन तीर्थोंमे इस पर्वतका सबसे अधिक आदर किया जाता है। सम्मेदशिखर पूजाविधानमे लिखा है सुथान । हान ॥ "सिद्धक्षेत्र तीरथ परम, है उत्कृष्ट शिखरसम्मेद सदा नमहु, होय पापकी गणित मुनि जहँ तें गए, लोक शिखर के तीर । तिनके पद पंकज नमों, नास भव को पीर ॥" मैसूर राज्यके हासन जिलामे श्रमणवेलगोला, निर्वाणभूमि न होते
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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