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आत्मजागृति के साधन - तीर्थस्थल
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करुणाका रस मूक पशुओको देखकर नही उत्पन्न हुआ था कि जिसकी प्रेरणासे उन्होने बुद्धत्वके लिए प्रयत्न प्रारम्भ किया। दीन प्राणियोके व्यथित जीवनके प्रति सच्ची सहानुभूति दिखानेवाले रागके सु-मधुर चौराहेसे मुख मोड विरागताके शैलशिखरपर चढनेवाले भगवान् नेमिनाथ और उनकी सहधर्मिणी बननेवाली सती राजीमती -जैसा आदर्श ससारमें कहा मिलेगा? ऐसे आदर्शोका मौन भाषामें मधुर स्मरण करानेवाला यह ऊर्जयन्त गिरि क्यो न वन्दनीय होगा ? इस गिरिराजसे पुनीत सौराष्ट्र देग भी भक्त वृन्दावन कविके द्वारा इन शब्दोमे वदनीय कहा गया है---
" शोभत गढ़ गिरनार नेमिस्वामी निरवान थल ।
दो हाथन सिरधार, वन्दो सोरठ देस मे ॥" - छन्दशतक, ६८ । भगवान् महावीरके जीवनका इतिहास और उनके त्यागकी अमर कहानी बिहार प्रान्तके पावापुर ग्राममें विद्यमान सरोवरस्थ धवल जिनमन्दिरमे मिलती है। भगवान् महावीरने ईसासे ५६६ वर्ष पूर्वं कुण्डलपुरमें क्षत्रिय शिरोमणि महाराज सिद्धार्थके यहा माता त्रिशलाके उदरसे जन्म लिया था। वे नाथव शके भूषण थे । ससारके भोगोमे उनका विवेकपूर्ण मन न लगा, अत बालब्रह्मचारी रहकर उनने ३० वर्षकी अवस्था में निर्ग्रन्य दिगम्बर मुद्रा धारण कर १२ वर्ष तपश्चर्या कर ४२ वर्षकी अवस्थामें कैवल्य प्राप्त किया और विश्व हितकर धर्मका उपदेश ३० वर्ष तक देकर ७२ वर्षकी अवस्थामे परमनिर्वाण मुक्ति प्राप्त की। प्रभुके चरित्रको विकृत करते हुए श्री श० रा० राजवाडेने नादसीय सूक्तके भाष्य (पूर्वार्ध) में ( पृ० १८६ ) भगवान्के नाथवशको 'नटवश' मान उन्हे नट पुत्र कहने की असत् चेष्टा की है और लिखा है, "गौतम व महावीर हे दोघे क्षत्रिय व्रात्य होते, कारण महावीरा 'नातपुत्त" म्हटला आहे व गौतमाचा जन्म लिच्छवी कुलात झाला आहे । नातपुत्त-नटपुत्र, नट व लिच्छवी ही दोन्ही कुले मनूने व्रात्य - क्षत्रिय म्हणून उल्लेखिली आहेत।" खेद