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जैनशासन
आत्मविकासके क्षेत्रमें भी अनेकान्त विद्या द्वारा निर्मल ज्योति प्राप्त होती है। लौकिक दृष्टिसे जैसे घृतसम्बद्ध मिट्टीके घडेको घीका घडा कहते है, उसी प्रकार शरीरसे सम्बद्ध जीवको भिन्न-भिन्न नाम आदि उपाधिया सहित कहते, है। परमार्थ दृष्टिसे घीका घडा कथन सत्य नही है, क्योकि घडा मिट्टीका है। मिट्टी घडेका उपादान कारण है, घृत उपादान कारण नहीं है। इस कारण मिट्टीका घडा कथन वास्तविक है। इसी प्रकार पारमार्थिक निश्चय दृष्टिसे आत्मा शरीरसे जुदा है। ज्ञान आनद-शक्तिका अक्षय भडार है। व्यावहारिक-लौकिक दृष्टिसे तत्त्वको जानकर परमार्थ दृष्टिद्वारा साधनाके मार्गपर चलकर निर्वाणको प्राप्त करना साधकका कर्तव्य है। ___ व्यवहार दृष्टि जहा ईश-चिंतन, भगवद्भक्ति आदिको कल्याणका मार्ग प्राथमिक साधकको बताती है, वहा निश्चय दृष्टि श्रेष्ठ पथको प्रदर्शित करते हुए कहती है
"यः परात्मा स एवाह योऽहं सः परमस्ततः । अहमेव मयोपास्यः नान्यः कश्चिदिति स्थितिः॥"
-समाधिशतक ३११ जो परमात्मा है, वह मै हूँ। जो मै हूँ,वह परमात्मा है। अत मुझे अपनी आत्माकी आराधना करनी चाहिये, अन्यकी नहीं, यह वास्तविक बात है।
स्याद्वाद तत्त्वज्ञानके मार्मिक आचार्य अमृतचन्द्र अनेकातवादके प्रति, इन शब्दोमें प्रणामाजलि समर्पित करते है
"परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम्। सकलनय-विलसिताना विरोधमथन नमाम्यनेकान्तम् ॥"
-पुरुषार्थसिद्ध्युपाय २॥