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जनशासन एक ऐसा नवीन प्राणी हिंसा करेगा जिसने हिंसाका सकल्प नही किया। हिसा करनेवाला भी नष्ट हो जायगा इसलिए बन्धनबद्ध कोई अन्य होगा। दण्डप्राप्त भी नष्ट हो जायगा इसलिए बन्धन-मुक्ति किसी अन्यकी होगी। इस प्रकारको अव्यवस्था बौद्धोके एकान्त क्षणिक सिद्धान्त द्वारा, होगी। समन्तभद्र रवामीका महत्त्वपूर्ण पद्य यह है
"न हिनस्त्यभिसन्धात हिनस्त्यनभिसन्धिमत् ।
बध्यते तवयापेतं चित्तं बद्धं न मुच्यते॥५१॥" वे यह भी लिखते है कि
"क्षणिकैकान्तपक्षेऽपि प्रेत्यभावाद्यसम्भवः । प्रत्यभिज्ञायभावान्न कार्यारम्भः कुतः फलम् ॥४१॥"
-प्राप्तमीमासा क्षणिक रूप एकान्त पक्षमे प्रत्यभिज्ञान, स्मृति, इच्छा आदिका अभाव होगा? जिस प्रकार किसी दूसरेके अनुभवमे आई हुई वस्तुका हमे स्मरण नहीं होता, उसी प्रकार किसी भी व्यक्तिको स्मरण नही होगा, क्योकि अनुभव करनेवाला जीव नष्ट हो गया और स्मरण करनेवाला एक नवीन उत्पन्न हुआ। प्रत्यभिज्ञान आदिके अभाव होनेके कारण कार्यका आरम्भ नहीं होगा, इसलिए पाप-पुण्य लक्षण स्वरूप फल भी नही होगा। इसके अभावमे न बन्ध होगा न मोक्ष ।
क्षणिक पक्षमे कारणसे कार्यकी उत्पत्तिके विषयमे भी अव्यवस्था होगी। बौद्धदर्शनकी मान्यताके अनुसार कारण सर्वथा नष्ट हो जायगा और कार्य बिल्कुल नवीन होगा। इसलिए उपादान नियमकी व्यवस्था नही होगी। सूतके बिना भी सूती वस्त्रकी उत्पत्ति होगी। सूतरूपी उपादान कारणका कार्यरूप वस्त्र परिणमन बौद्ध स्वीकार नही करता । असत् कार्यवाद स्वीकार करनेपर आकाश-पुष्पकी तरह पदार्थकी उत्पत्ति नहीं होगी। ऐसी स्थितिमें उपादान नियमके अभाव होनेपर कार्यकी उत्पत्तिमे कैसे सन्तोष होगा? असत्रूप कार्यकी उत्पत्ति