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जैनशासन
दिया गया है कि भगवान् महावीर बननेवाले सिंहकी पर्यायमे उस जीवने अहिंसाकी चमत्कारिणी साधना आरम्भ कर दी थी। क्या बिना सोचे समझे उसके सिंह शरीरको देख उसे मृगारि मान लेना और उसके प्राणघात के लिए प्रवृत्ति करना उचित होगा? आचार्य गुणभद्रने उस सिंहके विषय में लिखा है-"स्वार्थ मृगारिशब्दोऽसौ जहे तस्मिन् दयावति"-उस दयावान् सिंहके विषयमे मृगारि-मृगोका शत्रु इस शब्दने अपने यथार्थ अर्थका परित्याग कर दिया था-वह शब्द रूढिवश प्रचारमे आता था। ___ यह भी बात साधक सोचता है कि इस अनन्त ससारमे भूमण करता हुआ यह जीव आज सिंह, सर्पादि पर्यायमे है और अपनी पर्यायदोषके कारण अहिसात्मक वृत्तिको धारण नहीं कर सकता है, तो उसके जीवनकी समाप्ति कर देना कहा तक उचित है ? क्योकि हिसन करना उन आत्म-विकासहीन पशुओके समान मेरा धर्म नही है। जिस पशुको मै मारनेकी सोचता हूँ सम्भव है कि मेरे अत्यन्त स्नेही हितैषी जीवका ही उस पर्यायमे उत्पाद हुआ हो और दुर्भाग्यवश उस हतभाग्यको मनुष्योके द्वारा क्रूर मानी जानेवाली पर्यायमे जन्म मिला हो। ऐसे प्राणी के हनन करनेके विचारसे आत्मामे क्रूरताका शैतान अड्डा जमा लेता है। फिर उसमेंसे अहिंसात्मक वृत्ति दूर हो जाती है। अतएव दयालु व्यक्तिको अधिकसे अधिक प्रयत्न प्राणरक्षाका करना चाहिए। कभी-कभी जन्मान्तरमे हिसित जीव अच्छा बदला भी लेता है, यह नही भूलना चाहिए। ___ अहिंसाके नामपर एक बडी विचित्र धारणा सर्वभक्षी चीन, जापान आदि देशोमे पाई जाती है। अहिंसाका विनोदमय प्रदर्शन देख डा० रघुवीर, एम० ए०, पी० एच० डी० ने "जापानमे बुद्ध-अहिंसा-सिद्धान्तका परिपालन" शीर्षक लेखमे बताया था कि जापानी लोग चेरी नामक वृक्षकी लकडियोको खुदाईके काममे लाते है इसलिए टोकियोमे उनकी आत्माकी शान्तिके लिए प्रार्थना की जाती है। टूटी हुई पुतलियो