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जैनशासन
देखो, रोगीके हितकी दृष्टिवाला डॉक्टर आपरेशनमे असफलतावश यदि किसीका प्राणहरण कर देता है, तो उसे हिंसक नहीं माना जाता। हिंसाके परिणामके बिना हिसाका दोष नहीं लगता। कोई व्यक्ति अपने विरोधीके प्राणहरण करनेकी दृष्टि से उसपर बन्दूक छोडता है और दैववश निशाना चूकता है । ऐसी स्थितिमे भी वह व्यक्ति हिंसाका दोषी माना जाता है, क्योकि उसके हिसाके परिणाम थे। इसीलिए वह आजके न्यायालयमे भयकर दण्डको प्राप्त करता है। इस प्रकाशमे भारतवर्षके धार्मिक इतिहासके लेखकका जैन-अहिंसा पर आक्षेप निर्मूल प्रमाणित होता है। ___ उद्योगी हिसा वह है जो खेती, व्यापार आदि जीविकाके उचित उपायोके करनेमे हो जाती है। प्राथमिक साधक वुद्धिपूर्वक किसी भी प्राणीका घात नहीं करता, किन्तु कार्य करनेमे हिंसा हो जाया करती है। इस हिंसा-अहिंसाकी मीमासामे "हिंसा करना' और 'हिंसा हो जाना' में अतर है। हिंसा करनेमे बुद्धि और मनोवृत्ति प्राणघातकी ओर स्वेच्छापूर्वक जाती है, हिसा हो जानेमे मनोवृत्ति प्राणघातकी नहीं है, कितु साधन तथा परिस्थितिविशेषवश प्राणघात हो जाता है। मुमुक्षु ऐसे व्यवसाय, वाणिज्यमे प्रवृत्ति करता है, जिनसे आत्मा मलिन नहीं होती, अत क्रूर अथवा निन्दनीय व्यवसायमे नही लगता। न्याय तथा अहिंसाका रक्षणपूर्वक अल्पलाभमे भी वह सन्तुष्ट रहता है। वह जानता है कि शुद्ध तथा उचित उपायोसे आवश्यकतापूरक सपत्ति मिलेगी, अधिक नही। वह सम्पत्तिके स्थानमे पुण्याचरणको बडी और सच्ची सम्पत्ति मानता है। आत्मानुशासनमे लिखा है
"शुद्धर्धनविवर्धन्ते सतामपि न सम्पदः । न हि स्वच्छाम्बुभिः पूर्णाः कदाचिदपि सिन्धवः ॥ ४५ ॥"
१ अध्याय ७।