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जैनशासन
है। उनको वे सिद्धो ( Perfect Souls ) का भेद बताते है। समाधिमरणको आत्मघात समझनेमें भी ऐसा ही भूम हुआ है। उन्होने लिखा है-While Budhism repudiates Jainism holds that it "increaseth life". If asceticism is hard to Practise, if we cannot resist our pass ions and endure austerities, suicide is permitted"---Indian philosophy Vol, i. p. 327.
--"जहा वौद्धधर्म आत्मघातका निषेध करता है, वहा जैनधर्म आत्म-घातको जीवन-वर्धक मानता है। यदि साधु-जीवनका निर्वाह कठिन हो, यदि हम अपनी वासनाओपर विजय प्राप्त न कर सके और तपश्चर्या न कर पावे, तव आत्मघातकी आज्ञा दी गई है।" ___ इस सम्वन्धमें यह जानना आवश्यक है कि जैन-गासनमें आत्मघातको पाप, हिंसा और आत्माका अहितकारी बताया है। आत्मघातमें घवराकर मानसिक दुर्वलतावश अपनी जीवन डोर काटनेकी अविवेकता पाई जाती है। आत्मघाती आत्माकी अमरता और कर्मोके शुभाशुभ फल भोगनेके बारेमे कुछ भी नही सोच पाता। वह विवेक-हीन बन यह समझता है कि वर्तमान जीवन-दीपकके वुझ जानेपर मेरी जीवनसे उन्मुक्ति हो जाएगी। उसके परिणामोमे मलिनता, भीति, दैन्य आदि दुर्वलताएँ पाई जाती है । समाधिमरणमे निर्भीकता और वीरत्वका सद्भाव पाया जाता है। राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभका परित्यागकर शुद्ध अहिंसात्मक वृत्तिका पालन समाधिमरणका साधक करता है। यह ठीक है कि आत्म-घात और समाधिमरण दोनोमे प्राणोका विमोचन होता है , किन्तु दोनोमें मनोवृत्तिका वडा अन्तर है। आत्मघातमे जहा मरनेका लक्ष्य है, वहा समाधिमरणका ध्येय, मृत्यु के योग्य अनिवार्य परिस्थिति आनेपर अपने सद्गुणोकी रक्षा करनेका, अपने जीवन निर्माणका है। एकका लक्ष्य जहा जीवनको विगाडना है, वहा दूसरेकी दृष्टि जीवनको