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________________ पञ्चम अध्याय ॥* ७४५ सब बात धीरे २ तुझे प्राप्त होगी, जैसी कि तू ने विचारी है, अब हानि नहीं होगी, तेरे पाप कट गये, तू वीतराग देव का ध्यान धर, तेरे सब कार्य सिद्ध होंगे । १४१ - हे पूछने वाले ! तेरा विचार किसी व्यापार का है तथा तुझे दूसरी भी कोई चिन्ता है, इस सब कष्ट से छूट कर तेरा मङ्गल होगा, आज के सातवें दिन या तो तुझे कुछ लाभ होगा वा अच्छी बुद्धि उत्पन्न होगी । १४२ - हे पूछने वाले ! तेरे मन में धन और धान्य की अथवा घर के विषय की चिन्ता है, वह सब चिन्ता दूर होगी, तेरे कुटुम्ब की वृद्धि होगी, कल्याण होगा, सज्जनों से मुलाकात होगी तथा गई हुई वस्तु भी मिलेगी, इस बात का यह पुरावा है कि- तेरे घर में अथवा बाहर लड़ाई हुई है वा होगी। १४३ - हे पूछने वाले ! तेरे विचारे हुए सब काम सिद्ध होंगे, कल्याण होगा तथा लड़की का लाभ होगा, इस बात का यह पुरावा है कि-तू खप्न में किसी ग्राम में जाना देखेगा । १४४ - हे पूछने वाले ! तेरे सब कामों की सिद्धि होगी और तुझे सम्पत्ति मिलेगी इस बात का यह पुरावा है कि तू अपने विचारे हुए काम को स्वप्न में देखेगा वा देवमन्दिर को वा मूर्ति को अथवा चन्द्रमा को देखेगा | २११-हे पूछने वाले ! तू ने अपने मन में एक बड़ा कार्य विचारा है तथा तुझे धनविषयक चिन्ता है, सो तेरे लिये सब अच्छा होगा तथा प्यारे भाइयों की मुलाकात होगी, इस बात की सत्यता का प्रमाण यह है कि तू ने खम में ऊँचे मकान पर पहाड़ पर चढ़ना देखा है अथवा देखेगा । २१२ - हे पूछने वाले ! तेरे सब बातों की वृद्धि होगी, मित्रों से मुलाकात होगी, संसार से लाभ होगा, विवाह करने पर कुल की वृद्धि होगी तथा सोना चाँदी आदि सब सम्पत्ति होगी, इस बात का यह पुरावा है कि-तू ने खम में गाय वा बैल को देखा है अथवा देखेगा, तू परदेश में भी जाने का विचार करता है, तू कुलदेवी को मना, तेरे लिये अच्छा होगा । २११ – हे पूछने वाले ! तेरे मन में द्विपद अर्थात् दो पैर वाले की चिन्ता है और तू ने अच्छा काम, विचारा है उस का लाभ तुझे एक महीने में होगा, भाई तथा सज्जन मिलेंगे, शरीर में प्रसन्नता होगी और तेरे मनोऽभीष्ट ( मनचाहे ) कार्य होंगे परन्तु नो तेरा गोत्रदेव है उस की आराधना तथा सम्मान कर, तू माता पिता भाई और पुत्र आदि से जो कुछ प्रयोजन चाहता है वह तेरा मनोरथ सिद्ध होगा, इस बात का यह पुरावा है कि तू ने रात्रि में प्रत्यक्ष में अथवा खम में स्त्री से समागम किया है । ९४
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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