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________________ जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश आचक्रिवदुविभजिदुविण्णादु चावि सुहदरं होदि । एदेण कारणेण दु महव्वदा पंच पएणत्ता ।। ३३ ।। आदीए दुव्विसोधणे णिहणे तह सुहु दुरगुपालेया। पुरिमा य पच्छिमा वि हु कप्पाकप्पं ण जाणंति ॥ ३४ ॥ टीका-".... यस्मादन्यस्म प्रतिपादयितु स्वेच्छानुष्ठातु विभक्तु विज्ञातु चापि भवमि सुखतरं सामायिकं तेन कारणेन महाव्रतानि पंच प्रज्ञतानीति ॥३३॥" "पादितीर्थे शिष्या दुःखेन शोध्यन्ते सुष्ठु ऋजुस्वभावा यतः। तथा च पश्चिमतीर्थे शिष्या दुःखेन प्रतिपाल्यन्ते सुष्ठु वक्रस्वभावा यत: । पूर्वकालशिष्याः पश्चिमकालशिष्याश्च अपि स्फुट कल्पं योग्यं अकल्पं अयोग्यं न जानन्ति यतस्तत आदी निधने च छेदोपस्थापनमुपदिशत इति ॥ ३४ ॥" ___ अर्थात्-पाँच महाव्रतों (छेदोपस्थापना ) का कथन इस वजहमे किया गया है कि इनके द्वारा सामायिकका दूसरोंको उपदेश देना, स्वयं अनुष्ठान करना, पृथक् पृथक् रूपमे भावनामें लाना और सविशेषरूपसे समझना सुगम हो जाता है। पादिम तीर्थमे शिष्य मुश्किलसे शुद्ध किये जाते हैं; क्योंकि वे अतिशय सरलस्वभाव होते हैं । और अन्तिम तीर्थमें शिष्यजन कठिनतासे निर्वाह करते हैं; क्योंकि वे अतिशय वत्रस्वभाव होते हैं । साथ ही, इन दोनों समयोंके शिष्य स्पष्टरूपमे योग्य अयोग्यको नहीं जानते हैं। इसलिये श्रादि और अन्त के तीर्थम इस छेदोपस्थापनाके उपदेशकी जरूरत पैदा हुई है। यहांपर यह भी प्रकट कर देना ज़रूरी है कि छेदोपस्थापनामें हिंसादिकके भेदसे समस्त सावद्यकर्मका त्याग किया जाता है । इसलिये छेदोषस्थापनाकी ॐ इससे पहले, टीकामें, गाथाका शब्दार्थ मात्र दिया है। + 'तत्त्वार्थराजवार्तिक' में भट्टाकलंकदेवने भी छेदोपस्थापनाका ऐसा ही स्वरूप प्रतिपादन किया है । यथा: “सावद्य कर्म हिंसा दिभेदेन विवल्पनिवृत्तिः छेदोपस्थापना ।" इसी ग्रन्थमें अकलंकदेवने यह भी लिखा है कि सामायिककी अपेक्षा व्रत एक है और छेदोपस्थापनाकी अपेक्षा उसके पांच भेद हैं । यथाः
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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