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वीर-शासनकी उत्पत्तिका समय और स्थान
जैनियोंके अन्तिम तीर्थकर श्रीवीरभगवान्के शासनतीर्थको उत्पन्न हुए आज कितना समय होगया. किस शुभवेलामे अथवा पुण्य-तिथिको उसका जन्म हुआ
और किस स्थान पर वह सर्वप्रथम प्रवर्तित किया गया, ये सब बाते ही आजके मेरे इम लेखका विषय है, जिन्हें भावी वीरशासन-जयन्ती-महोत्सवके लिये जान लेना सभीके लिये प्रावश्यक है । इस सम्बन्धमें अब नक जो गवेषणाएं (Researches ) हुई है उनका सार इस प्रकार है:
किमी भी जैनतीर्थकरका शासनतीर्थ केवलज्ञानके उत्पन्न होनेमे पहले प्रवतित नहीं होता-तीर्थप्रवृत्तिके पूर्वमे केवलज्ञान की उत्पत्तिका होना आवश्यक है। वीरभगवानको उस केवलज्ञानज्योतिकी संप्राप्ति बैमाख सुदि दशमीको अपराहके समय उस वक्त हुई थी जबकि आप ज़म्भिका ग्रामके वाहिर, ऋजुकुलानदीके किनारे, शालवृक्षके नीचे, एक शिलापर षष्ठोपवाससे युक्त हुए क्षपक-श्रेणीपर आरूढ थे-आपने शुक्लध्यान लगा रक्खा था। जैसा कि नीचे लिखे वाक्योंसे प्रकट है
उजुकूलणदीतीरे जंभियगामे वहिं सिलावट्टे । छठूणादावेंतो अवरोह पायछायाए ॥ वइसाहजोण्ह-पक्खे दसमीए खवगसेढिमारूढो। हेतूणे घाइकम्मं केवलणाणं समावण्णो ॥
-धवल-जयधवलमें उद्धृत प्राचीनगाथाएँ ।