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. भ० महावीर और उनका समय .. सपट्विंशे शतेऽन्दानां मृते विक्रमराजनि । सौराष्ट्र वल्लभीपुर्यामभूत्तत्कथ्यते मया ॥१८८||
-वामदेवकृत, भावसंग्रह इस संपूर्ण विवेचन परमे यह बात भले प्रकार स्पष्ट हो जाती है कि प्रचलित विक्रमसंवत् विक्रमकी मृत्युका संवत् है, जो वीरनिर्वागमे ४७० वर्ष ५ महीने के बाद प्रारम्भ होता है । और इस लिये वीरनिर्वागासे ४७० वर्ष बाद विक्रम राजाका जन्म होनेकी जो बात कही जाती है और उसके आधार पर प्रचलित वीरनिर्वाणमंवत् पर प्रापनि की जाती है वह ठीक नहीं है। और न यह बात ही ठीक बैठती है कि इस विक्रमने १८ वर्षको अवस्थामें राज्य प्राप्त करके उसी वक्त से अपना संवत् प्रचलित किया है । ऐमा माननेके लिये इतिहासमें कोई भी समर्थ कारण नहीं है। हो सकता है कि यह एक विक्रमकी बातको दूसरे विक्रमके साथ जोड़ देनेका ही नतीजा हो । - इसके सिवाय, नन्दिसघकी एक पट्टावलीमें-विक्रम प्रबन्धमें भी-जो यह वाक्य दिया है कि
"सत्तरिचदसदजुत्तो जिणकाला विकमा हवाइ जम्मो।"
अर्थात् -'जिनकालसे ( महावीरके निर्वाणये ) * विक्रमजन्म ४७० वर्षके अन्तरको लिये डग है'। और दूसरी पट्टावली मे जो ग्राना>क समयकी गणना विक्रमके राज्यारोहगा-कालमे-उक्त जन्मकालमै १८ की वृद्धि करके-की गई है वह मब उक्त शकपालको और उसके आधार पर बने हुए विक्रमकालको ठीक न समझनेका परिणाम है, अथवा यों कहिये कि पाश्वनाथके निर्वागणसे ढाईसौ वर्ष वाद महावीरका जन्म या केवलज्ञानको प्राप्त होना मान लेने जैसी ग़लती है।
ऐसी हालतमें कुछ जैन, अर्जन तथा पश्मिीय और पूर्वीय विद्वानोंने पट्रावलियोंको लेकर जो प्रचलित वीर-निर्वाण मम्वत् पर यह आपत्ति की है कि 'उसकी वर्षसख्यामें १८ वर्षकी कमी है जिसे पूरा किया जाना चाहिये
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* विक्रमजन्मका प्राशय यदि विक्रमकाल अथवा विक्रमसम्वत्की उत्पत्तिसे लिया जाय तो यह कथन ठीक हो सकता है। क्योंकि विक्रमसम्वत्की उत्पत्ति विक्रमको मृत्युके बाद हुई पाई जाती है।