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________________ जैन साहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश इसके सिवाय, हरिवंशपुराण तथा त्रिलोकप्रज्ञप्ति में महावीरके पश्चात् एक हजार वर्षके भीतर होनेवाले राज्योंके समय की जो गरणना की गई है उसमें साफ़ तौर पर कल्किराज्यके ४२ वर्ष शामिल किये गये हैं । ऐसी हालत में यह स्पष्ट है कि त्रिलोक तारकी उक्त गाथामें शक प्रोर कल्कीका जो समय दिया है वह अलग अलग उनके राज्य-कालकी समाप्तिका सूचक है । और इसलिये यह नहीं कहा जा सकता कि शक राजाका राज्यकाल वीर - निर्वाणसे ६०५ वर्ष ५ महीने बाद प्रारम्भ हुआ और उसकी — उसके कतिपय वर्षात्मक स्थितिकालकी -- समाप्ति के बाद ३६४ वर्ष ७ महीने और बीतने पर कल्किका राज्यारम्भ हुआ । ऐसा कहने पर कल्किका अस्तित्वसमय वीर - निर्वाणसे एक हजार वर्षके भीतर न रहकर ११०० वर्षके करीब हो जाता है और उससे एक हजारकी नियत संख्या में तथा दूसरे प्राचीन ग्रन्थोंके कथनमें भी बाघा प्राती है और एक प्रकार मे सारी ही कालगणना बिगड़ जाती है । इसी तरह यह भी स्पष्ट है कि ३० + श्रीयुत के० पी० जायसवाल बैरिष्टर पटनाने, जुलाई सन् १९१७ की 'इण्डियन एण्टिक्वेरी' में प्रकाशित अपने एक लेखमें, हरिवंशपुराणके 'द्विचत्वारिंशदेवातः कल्किराजस्य राजता' वाक्यके सामने मौजूद होते हुए भी, जो यह लिख दिया है कि इस पुराण में कल्किराज्यके वर्ष नहीं दिये, यह बड़े ही आश्वर्यकी बात है । प्रापका इस पुराणके आधार पर गुप्तराज्य और कल्किराज्यके बीच ४२ वर्षका अन्तर बतलाना और कल्किके प्रस्तकालको उसका उदयकाल ( Risc of Kalki ) सूचित कर देना बहुत बड़ी गलती तथा भूल है । हाँ, शक सम्वत् यदि वास्तवमे शकराजाके राज्यारम्भसे ही प्रारम्भ हुआ हो तो यह कहा जा सकता है कि त्रिलोकसारकी उक्त गाथामें शक के ३६४ वर्ष 3 महीने बाद जो कल्कीका होना लिखा है उसमें शक और कल्की दोनों राजाका राज्यकाल शामिल है । परन्तु इस कथनमें यह विषमता बनी ही रहेगी कि अमुक अमुक वर्षसंख्या के बाद 'शकराजा हुम्रा' तथा 'कल्किराजा हुभा' इन दो सदृश वाक्योंमेंसे एकमें तो राज्यकालको शामिल नही किया और दूसरे में, वह शामिल कर लिया गया है, जो कथन-पद्धतिके विरुद्ध ' है ।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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