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जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश
महावीरका समय
अब देखना यह है कि भगवान् महावीरको अवतार लिये ठीक कितने वर्ष हुए हैं । महावीरकी प्रायु कुछ कम ७२ वर्षकी - ७१ वर्ष, ६ मास, १८ दिनकीथी । यदि महावीरका निर्वारण-समय ठीक मालूम हो तो उनके अवतार - समयको अथवा जयन्तीके अवसरों पर उनकी वर्षगाँठ संख्याको सूचित करने में कुछ भी देर न लगे । परन्तु निर्वारण-समय अर्से से विवादग्रस्त चल रहा है— प्रचलित वीरनिर्वाण -संवत् पर आपत्ति की जाती हैं- कितने ही देशी विदेशी विद्वानोंका उसके विषय में मतभेद है; और उसका कारण साहित्यकी कुछ पुरानी गड़बड़, अर्थ समझने की गलती अथवा कालगणनाकी भूलजान पड़ती है । यदि इस गड़बड़, गलती अथवा भूलका ठीक पता चल जाय तो समयका निर्णय सहजमें ही हो सकता है और उससे बहुत काम निकल सकता है; क्योंकि महावीर के समयका प्रश्न जैन इतिहासके लिये ही नहीं किन्तु भारतके इतिहासके लिये भी एक बड़े ही महत्वका प्रश्न है। इसीसे अनेक विद्वानोंने उसको हल करनेके लिये बहुत परिश्रम किया है और उससे कितनी ही नई नई बातें प्रकाश में आई हैं। परन्तु फिर भी, इस विषय में, उन्हें जैसी चाहिये वैसी सफलता नही मिली - बल्कि कुछ नई उलझनें भी पैदा हो गई हैं— श्रौर इस लिये यह प्रश्न अभी तक बराबर विचारके लिये चला ही जाता है । मेरी इच्छा थी कि मै इस विषय में कुछ गहरा उतर कर पूरी तफ़सील के साथ एक विस्तृत लेख लिखू परन्तु समयकी कमी आादिके कारण वैसा न करके, संक्षेपमें ही, अपनी खोजका एक सार भाग पाठकोंके सामने रखता हूँ । आशा है कि सहृदय पाठक इस परसे ही, उस गड़बड़, गलती अथवा भूलको मालूम करके, समयका ठीक निर्णय करनेमें समर्थ हो सकेंगे ।
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आजकल जो वीर - निर्वारण-संवत् प्रचलित है और कार्तिक शुक्ला प्रतिपदामे प्रारम्भ होता है वह २४६० है । इस संवत्का एक आधार 'त्रिलोकसार' की निम्न गाथा है, जो श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीका बनाया हुआ है: परणछस्सयवस्सं पणमासजुदं गमिय वीरणिव्वुझ्दो | सगराजी तो ककी चदुणवतिय महिय सगमासं ॥ ८५०