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________________ 276 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश उपयोगिताको जतलाते हुए, इस टीकाका निम्न प्रकारसे उल्लेख किया है “न चैष (कर्णाटक) भाषाशास्त्रानुपयोगिनी तत्त्वार्थमहाशास्त्रव्याख्यानस्य षण्णवतिसहस्त्रप्रमितग्रन्थसंदर्भरूपस्य चूडामण्यभिधानस्य महाशास्त्रस्यान्येषां च शब्दागम-युक्त्यागम-परमागम-विषयाणां तथा काव्य-नाटक-कलाशास्त्र-विषयारणं च बहूनां ग्रन्थानामपि भाषाकतानामुपलब्धमानत्वात्। इस उल्लेखसे स्पष्ट है कि 'चुडामरिण' जिन दोनों (कर्मप्राभूत और कषायप्राभृत) सिद्धान्त-शास्त्रोंकी टीका कहलाती है, उन्हें यहाँ 'तत्त्वार्थमहाशास्त्र के नामसे उल्लेखित किया गया है। इससे सिद्धान्तशास्त्र और 'तत्त्वार्थशास्त्र' दोनोंकी एकार्थताका समर्थन होता है और साथ ही यह पाया जाता है कि कर्मप्राभूत तथा कषायप्राभूत ग्रंथ 'तत्त्वार्थशास्त्र' कहलाते थे। तत्त्वार्थविषयक होनसे उन्हें 'तत्त्वार्थशास्त्र' या 'तत्त्वार्थमूत्र' कहना कोई अनुचित भी प्रतीत नहीं होता / इन्हीं तत्त्वार्थशास्त्रोंमेसे 'कर्मप्राभूत' मिद्धान्तपर ममन्तभदने भी एक विस्तृत संस्कृनटीका लिखी है जिसका परिचय पहले दिया जा चुका है मौर जिसकी संख्या 'इन्द्रनन्दि-श्रुतावतार के अनुसार 48 हजार और 'विबुधश्रीधर-विर. चित-श्रुतावनारके मनमे 68 हजार श्लोक-परिमारग है। ऐमी हालतमें, पाश्चर्य नहीं कि कवि हस्तिमल्लादिकने अपने उक्त पद्यमें समन्तभद्रको तत्वार्थमूत्रके जिस 'गधहस्ति नामक व्याख्यानका कर्ता मूचित किया है वह यही टीका अथवा भाप्य हो / जब तक किसी प्रबल और समर्थ प्रमागके द्वारा, बिना किसी संदेहके, यह मालूम न हो जाय कि समन्तभद्रने उमास्वाति के तत्त्वार्थसूत्रपर ही 'गंधहस्ति' नामक महाभाष्यकी रचना की थी तबतक उनके उक्त सिदान्तभाष्यको गंधहस्तिमहाभाष्य माना जा सकता है और उसमें यह पच कोई बाधक प्रतीत नहीं होता। (2) पाराके जेनसिद्धान्त भवनमें ताइपत्रों पर लिखा हुमा, कनड़ी भाषाका एक अपूर्ण ग्रंथ है, जिसका तथा जिसके कर्ताका नाम मालूम नहीं हो ... देखो, गइम साहबकी 'स्किपर्णम ऐट श्रवणबेलगोल' नामकी पुस्तक सन 1886 की छपी हुई।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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