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________________ १८ जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश ' अथवा आत्मविकासके लिये अहिंसाकी बहुत बड़ी जरूरत है और वह वीरताका चिह्न है -- कायरताका नहीं । कायरताका आधार प्राय: भय होता है, इसलिये कायर मनुष्य अहिंसा धर्मका पात्र नहीं -- उसमें श्रहिंसा ठहर नहीं सकती । वह वीरोंके ही योग्य है और इसीलिये महावीरके धर्ममें उसको प्रधान स्थान प्राप्त हैं । जो लोग अहिंसा पर कायरताका कलंक लगाते हैं उन्होंने वास्तव में अहिंसाके रहस्यको समझा ही नहीं । वे अपनी निर्बलता और प्रात्म विस्मृतिके कारण कषायों से अभिभूत हुए कायरताको वीरता और आत्माके क्रोधादिक रूप पतनको ही उसका उत्थान समझ बैठे हैं ! ऐसे लोगोंकी स्थिति, निःसन्देह बड़ी ही करुणाजनक है । सर्वोदय तीर्थ स्वामी समन्तभद्रने भगवान् महावीर और उनके शासनके सम्बन्धमें और भी कितने ही बहुमूल्य वाक्य कहे हैं जिनमेसे एक सुन्दर वाक्य मैं यहाँ पर और उदवृत कर देना चाहता हूँ और वह इस प्रकार है: सर्वान्तवत्तद्गुणमुख्यकल्पं, सर्वान्तशून्यं च मिथोऽनपेक्षम् । सर्वापदामन्तकरं निरन्तं, सर्वोदयं तीर्थमिदं तचैव ॥ ६१|| -युवत्यनुशासन इसमें भगवान् महावीरके शासन अथवा उनके परमागमलक्षरण रूप वाक्यका स्वरूप बतलाते हुए जो उसे ही सम्पूर्ण आपदाओंका अन्त करने वाला और सबोंके अभ्युदयका काररण तथा पूर्ण अभ्युदयका - विकासका - हेतु ऐसा 'सर्वोदय तीर्थ' बतलाया है वह बिल्कुल ठीक है । महावीर भगवान्‌को शासन अनेकान्त के प्रभाव से सकल दुर्नयो तथा मिथ्यादर्शनोंका अन्त ( निरसन) करनेवाला है और ये दुर्नय तथा मिथ्यादर्शन ही संसार में अनेक शारीरिक तथा मानसिक दुःखरूप आपदा के कारण होते हैं । इसलिये जो लोग भगवान् महावीरके शासनका उनके धर्मका - प्राश्रय लेते हैं—बसे पूर्णतया अपनाते हैं— उनके मिथ्यादर्शनादिक दूर होकर समस्त दुःख मिट जाते है । और वे इस धर्मके, प्रसादसे अपना पूर्ण trयुदय सिद्ध कर सकते हैं। महावीरकी ओरये इस धर्मका द्वार सबके लिये खुला हुआ है । जैसा कि जैनग्रत्योंके निम्न वाक्योंसे ध्वनित है :
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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