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भ० महावीर और उनका समय श्रेणिक राज्य करता था, जिसे बिम्बसार भी कहते हैं । उसने भगवान्की परिषदोंमें-समवशरण सभागोंमें प्रधान भाग लिया है और उसके प्रश्नों पर बहुतसे रहस्योंका उद्घाटन हुअा है । श्रोणिककी रानी चेलना भी राजा चेटककी पुत्री थी और इसलिये वह रिश्तेमें महावीरकी मातृस्वसा (मावसी) होती थी। इस तरह महावीरका अनेक राज्योंके साथमें शारीरिक सम्बन्ध भी था। उनमें आपके धर्मका बहुत प्रचार हुआ और उसे अच्छा राजाश्रय मिला है।
विहारके समय महावीरके साथ कितने ही मुनि-पायिकाओं तथा श्रावकश्राविकाओंका संघ रहता था । आपने चतुर्विध संघकी अच्छी योजना और बड़ी ही सुन्दर व्यवस्था की थी। इस संघके गणधरोंकी संख्या ग्यारह तक पहुँच गई थी और उनमें सबसे प्रधान गौतम स्वामी थे, जो 'इन्द्रभूति' नामसे भी प्रसिद्ध हैं और समवसरणमें मुख्य गणधरका कार्य करते थे। ये गौतम-गोत्री
और सकल वेद-वेदांगके पारगामी एक बहुत बड़े ब्राह्मण विद्वान् थे, जो महावीरको केवलज्ञानकी संप्राप्ति होनेके पश्चान् उनके पास अपने जीवाऽजीवविषयक सन्देहके निवारणार्थ गये थे, सन्देहकी निवृत्तिपर उनके शिष्य बन गये थे और जिन्होंने अपने बहुतसे शिष्योंके साथ भगवान्से जिनदीक्षा लेली थी । अस्तु ।
तीस वर्षके लम्बे विहारको समाप्त करते और कृतकृत्य होते हुए, भगवान्
अभिजित नक्षत्र में हुई है; जैसा कि धवल सिद्धान्तके निम्न वाक्यसे प्रकट है
वासस्स पढममासे पढमे पक्खम्मि सावरणे. बहुले ।
पाडिवदपुत्रदिवसे तित्युप्पत्ती दु अभिजिम्हि ॥२॥ 1 कुछ श्वेताम्बरीय ग्रन्थानुसार 'मातुलजा'~-मामूज़ाद बहन ।
* धवल सिद्धान्तमें---और जयधवलमें भी कुछ प्राचार्योंके मतानुसार एक प्राचीन गाथाके आधार पर विहारकालकी संख्या २६ वर्ष ५ महीने २० दिन भी दी है, जो केवलोत्पत्ति और निर्वाणकी तिथियोंको देखते हुए ठीक जान पड़ती है। और इसलिये ३० वर्षकी यह संख्या स्थूलरूपसे समझनी चाहिये । वह गाथा इस प्रकार है:
वासाणूणत्तीसं पंच य मासे य वीसदिवसे य । चउविहमरणगारेहिं बारहहि गणेहि विहरतो ॥१॥