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AAMANAN
स्वामी समन्तभद्र जैन सिद्धान्तोंके महत्वको विद्वानोंके हृदय-पटलपर अंकित कर देनेकी सुरुचि इतनी बढ़ी हुई थी कि उन्होंने सारे भारतवर्षको अपने वादका लीलास्थल बनाया था । वे कभी इस बातकी प्रतीक्षा नहीं करते थे कि कोई दूसरा उन्हें वादके लिये निमंत्रण दे और न उनकी मनःपरिणति उन्हें इस बातमें मंतोष करनेकी ही इजाजत देती थी कि जो लोग अज्ञानभावसे मिथ्यात्वरूपी गों ( खड्डों) में गिरकर अपना प्रात्मपतन कर रहे हैं उन्हें वैमा करने दिया जाय । और इस लिये, उन्हें जहाँ कहीं किसी महावादी अथवा किमी वड़ी वादशालाका पता लगता था वे वहीं पहुंच जाते थे और अपने वादका डंका बजाकर विद्वानोंको स्वत: वादके लिये आह्वान करते थे । डकेको सुनकर वादीजन, यथानियम, जनताके साथ वादस्थानपर एकत्र हो जाते थे और नब समन्तभद्र उनके मामने अपने सिद्धान्तोका बड़ी ही खूबीके साथ विवेचन करते थे और माथ ही इस बातकी घोषणा कर देते थे कि उन सिद्धान्तोंमेसे जिम किमी सिद्धान्न पर भी किसीको आपत्ति हो वह वादके लिये सामने प्रा जाय । कहते हैं कि समन्तभद्रके स्यादादन्यायको तुलामे तुले हुए नत्वभापरणको सुनकर लोग मुग्ध हो जाते थे और उन्हे उगका कुछ भी विरोध करते नहीं बनता था-यदि कभी कोई मनुष्य अहंकारक बग होकर अथवा नासमझीके कारण कुछ विरोध खड़ा करता था तो उसे शीघ्र ही निकनर हो जाना पड़ता था। इस तरह पर, समन्तभद्र भारत के पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर, प्रायः मभी देगोमे, एक अप्रतिद्वंद्वी सिंहको तरह क्रीडा करते हुए, निर्भयताके माथ वादके लिये धूम है। एक बार आप घमते हुए 'करहाटक' नगरमे पहुँचे, जिमे कुछ विद्वानोंने सितारा जिलेका
+ उन दिनों-- ममन्तभद्रके समयमे-,फाहियान (ई० स० ४००) और नत्संग (ई. स. ६३० ) के कथनानुसार, यह दस्तूर था कि नगरमें किसी सार्वजनिक स्थानपर एक उंका ( भेरी या नक्कारा ) रक्खा जाता था और जो कोई विद्वान किसी मतका प्रचार करना चाहता था अथवा वादमे अपने पाण्डित्य पौर नपूण्यको सिद्ध करनेकी इच्छा रखता था वह वादघोषणाके तौरपर, उस डंकेको बजाता था।
-हिस्टरी माफ़ कनडीज लिटरेचर।