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________________ स्वामी समन्तभद्र १६३ Read at wrest fraाके प्रालोकसे एक बार सारा भारत प्रालोकित हो चुका है। देशमें जिस समय बौद्धादिकोंका प्रबल प्रातंक छाया हुआ था और लोग उनके नैरात्म्यवाद, शुम्यवाद क्षणिकवादादि सिद्धान्तों संत्रस्त थे - घबरा रहे -प्रथवा उन एकान्त गतमें पड़कर अपना प्रात्मपतन करनेके लिये विवश हो रहे थे, उस समय दक्षिण भारतमें उदय होकर आपने जो लोकसेवा की है वह बडे ही महत्वकी तथा चिरस्मरणीय है । और इस लिये शुभचंद्राचार्यने जो आपको 'भारतभूषण' लिखा है वह बहुत ही युक्तियुक्ति जान पड़ता है। स्वामी समंतभद्र, यद्यपि, बहुतमे उनमोनम गुग्गोंके स्वामी थे, फिर भी कfree, resea वादित्व और वाग्मित्व नामके चार गुण प्रापमे Menurer कोटिको योग्यतावाले थे-ये वारों ही शनियाँ ग्रापमं नाम तोरस विकाशको प्राप्त हुई थी और इनके कारण प्रापका निर्मल दूर दूर तक चारों ओर फैल गया था। उस वक्त जितने वादी, वाग्मी + कवि और " "Samantbhadra's appearence in South India marks an epoch not only in the annals of Digambar Tradition, but also in the history of Sanskrit literature." समन्तभद्रा भद्राय भातृ भारतभूषणः । नाश्वपुराण | + वादी विजयवाग्बुनिः जिसकी वचनप्रवृति विजयकी और उसे 'वाद' कहते है । + 'वाग्मी त जनरजन:- -जो अपनी वाक्पटुता तथा शब्दचातुरीने दुसरोको रंजायमान करने अथवा अपना प्रेमी बनालेनेमे निपुगा हो उसे 'वाग्मी' कहते हैं । * 'कविनू' तनसंदर्भ: - जो नये नये गंदर्भ नई नई मौलिक रचनाएँ तैयार करनेमें समर्थ हो वह कवि है, अथवा प्रतिभा ही जिसका उज्जीवन है. जो नानावनाओं में निपुण है, कृती है, नाना अभ्यासोंमे कुशलबुद्धि है पोर व्युत्पनिमान ( लौकिक व्यवहारोंमें कुशल ) है उसे भी कवि कहते हैं; यथाafratatent नानावर्णनानिपुरणः कृती । nirrooraarataमनिष्युत्पत्तिमान्कविः । —पलंकारचिन्तामरिण ।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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