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उमास्वाति या उमास्वामी? अभूदुमास्वातिमुनीश्वरोऽसावाचार्यशब्दोत्तरगृद्धपिछः ।
-शिलालेख नं० ४७ श्रीमानुमास्वातिरयं यतीशस्तत्वार्थसूत्रं प्रकटीचकार ।
-शि० नं० १०५ अभूदुमास्वातिमुनिः पवित्रे वंशे तदीये सकलार्थवेदी। सूत्रीकृतं येन जिनप्रणीतं शास्त्रार्थजातं मुनिपुगवेन ॥
-शि० नं० १०८ इन शिलालेखोंमें पहला शिलालेख शक संवत् १०३७ का, दूसरा १३२० का और तीसरा १३५५ का लिखा हुआ है। ४७वें शिलालेखवाला वाक्य ४०, ४२, ४३ और ५० नम्बरके शिलालेखोंमें भी पाया जाता है। इससे स्पष्ट है कि आजसे आठसौ वर्षसे भो पहलेसे दिगम्बर सम्प्रदायमें तत्वार्थमूत्रके कर्ताका नाम 'उ मास्वाति' प्रचलित था और वह उसके बाद भी कई सौ वर्ष तक बराबर प्रचलित रहा है। साथ ही, यह भी मालूम होता है कि उनका दूसरा नाम गृध्रपिञ्छाचार्य था । विद्यानन्द स्वामीने भी, अपने 'इलोकवार्तिक' में, इस पिछले नामका उल्लेख किया है ।
(२) 'प्रिग्रेफिया कर्णाटिका' की ८ वी जिल्दमें प्रकाशित 'नगर' ताल्लुके ४६ वे शिलालेखम भी 'उमास्वाति' नाम दिया है
तत्त्वार्थसूत्रकारमुमास्वातिमुनीश्वरम् ।
श्रुतकेवलिदेशीयं वन्देहं गुणमन्दिरम् ॥ (३) नन्दिमङ्घकी 'गुर्वावली मे भी तत्वार्थमूत्रके कर्ताका नाम 'उमास्वाति' दिया है । यथा
तत्त्वार्थसूत्रकर्तृत्वप्रकटीकृतसन्मतिः ।
उमास्वातिपदाचार्यो मिथ्यात्वतिमिरांशुमान्छ । जैनसिद्धान्तभास्करकी ४थी किरणमें प्रकाशित श्रीशुभचन्द्राचार्यकी गुर्वावलीमें भी यही नाम है और यही वाक्य दिया है और ये शुभचन्द्राचार्य विक्रम की १६ वीं और १७ वीं शताब्दीमें हो गये हैं।
* देखो जनहितैषी भाग ६ अङ्क ७-८ ।