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________________ तत्त्वार्थसूत्रके कर्ता कुन्दकुन्द १०३ टिप्पणी-“एवं चाकर्ण्य वाचको छु मास्वातिदिगंबरो निन्हव इति केचिन्मावदन्नदःशिक्षार्थ परमेतावचतुरैरितिपद्य ब्र महे शुद्धः सत्यः प्रथम इति यावद्यः कोप्यस्य प्रन्थस्य निर्माता स तु केनापि प्रकारेण न निंदनीय एतावश्चतुर्विधेयमिति । तर्हि कुदकुद एवैतत्प्रथम कर्जेति संशयापाहाय स्पष्ट झापयामः यः कुदकुदनामेत्यादि अयं च परतीर्थिकैः कुदकुद इडाचार्यः पद्यनंदी उमास्वातिरित्यादिनामांतराणि कल्पयित्वा पठ्यते सोऽस्मात्प्रकरणकर्तु रुमास्वातिरित्येव प्रसिद्धनाम्नः सकाशादन्य एव ज्ञेयः किं पुनः पुनर्वेदयामः ।" ____ इसमें अपने सम्प्रदाय-वालोंको दो बातोंकी शिक्षा की गई है-एक तो यह कि इस तत्त्वार्थसूत्रके विधाता वाचक उमास्वातिको कोई दिगम्बर अथवा निन्हव न कहने पाए, ऐसा चतुर पुरुषोंको यत्न करना चाहिये । दूसरे यह कि कुन्दकुन्द, इडाचार्य, पद्मनंदी, और उमास्वाति ये एक ही व्यक्ति के नाम कल्पित करके जो लोग इस ग्रन्थका असली अथवा आद्यकर्ता कुन्दकुन्दको बतलाते हैं वह ठीक नही, वह कुन्दकुन्द हमारे इस तत्त्वार्थमूत्रकर्ना प्रसिद्ध उमास्त्रानिमे भिन्न हीव्यक्ति है। ___ इस परमे मुझे यह खयाल हुआ था कि गायद पट्टावलि-वगित कुन्दकुन्दके नामों को लेकर विमी दन्तकथाके आधार पर ही यह कल्पना की गई है । और इस लिये में उसी वक्तमे इस विषयकी खोजमे था कि दिगम्बर-माहित्यमें किसी जगह पर कुन्दकुन्दाचार्यको इम तन्वार्थमूत्रका कर्ता लिखा है या नहीं। खोज करने पर बम्बईके ऐलक-पन्नालालसरस्वतीभवनमे 'अर्हत्सूत्रवृत्ति' नामका एक ग्रंथ उपलब्ध हमा, जो कि तत्वार्थमूत्रकी टीका है-'सिद्धान्त सूत्रवृत्ति' भी जिसका नाम है-और जिगे 'राजेन्द्रमौलि नामके भट्टारकने रचा है । इममें तन्वार्थमूत्रको स्पष्टतया कुन्दकुन्दाचार्यकी कृति लिखा है; जैसा कि इसके निम्न वाक्योंसे प्रकट है:___ "श्रथ अर्हत्सूत्रवृत्तिमारभे । तत्रादौ मंगलाद्यानि मंगलमध्पानि मंगलान्तानि च शास्त्राणि प्रथ्यते । तदस्माकं विध्नघाताय अस्मदाचार्यो भगवान् कुन्द-कुन्दमुनिः स्वेष्टदेवतागणोत्कर्षकीर्तनपूर्वक तत्स्वरूपवस्तुनिदेशात्मकं च शिष्टाचारविशिष्टष्टजीववाद सिद्धान्तीकृत्य तद्गुणोप
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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