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जैन जगत् के उज्ज्वल तारे
करने लगे । अपने आप को भी पेट भर कर उन्हों ने विकारा। उसी समय जाति-स्मरण-शान उन्हें हो श्राया । श्रय कम्पिल की आँखों में संसार का धन, केवल धूल मात्र था । "राजन् ! मैंने सब कुछ पा लिया । " यह कह कर, वे वहाँ से चल दिये । यही नहीं, अपने श्र. त्म-कल्याण के मार्ग की सम्पूर्ण सांसारिक झटों को भी उन्हों ने चीर-फाड़ फेंका। साधु जीवन का अनुसरण चे करने लगे। इस मार्ग में केवल छः मास भो मुश्किल से चल पाये होंगे, कि श्रात्म-कल्याण का राज मार्ग उन्हें मिल गया। हमें भी चाहिए, कि हम भी खूब देख-भाल . कर, अपने साथियों को चुनें।
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