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उत्तराध्ययन की रचना के सम्बन्ध में नियुक्ति, चूर्णि तथा अन्य मनी
बाहु की दृष्टि से उत्तराध्ययन एक व्यक्ति की रचना नहीं है । उनकी दृष्टि से भागों में विभक्त किया जा सकता है—१. अंगप्रभव, २ जिनभाषित, ३. प्रत्ये उत्तराध्ययन का द्वितीय अध्ययन अंगप्रभव है । वह कर्मप्रवादपूर्व के सत्त अध्ययन जिनभाषित है । ३५ आठवां अध्ययन प्रत्येकबुद्धभापित है । ३६ समुत्थित है । ३७
उत्पन्न पुरुष भी सद्गुणों को अपना कर, का पूरा-पूरा हक़दार हो जाता है ।
हरिकेशी मुनि
बनने
से नारायण नर