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जैन जगत् के उज्ज्वल तारे
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ही थे । पाँच सौ डाकुओं के साथ, प्रभवा तथा कुमार ने उसी दिन दीक्षा धारण कर ली। उसी दिन से, वे सब के सब श्रात्म-कल्याण में लग पढ़े। कंचन और कामिनी से पीछा छुड़ाना सचमुच में विरले ही महा पुरुषों का काम है । संसार की सम्पूर्ण व्याधियों की मूल ये ही दो बातें हैं। एक बार. साहस कर के जिसने भी मुँह इन से मोड़ा, उसी ने कर्म की रेख में मेख मारने का काम कर दिया।
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