________________
२०
जैन-जागरणके अग्रदूत . . सैकडो पढे हुए पाठ भूल गया। जोरेको वजाय सौंप और धनियेके वजाय अजमायन लानेकी मैने अक्सर भूल की। पर न जाने क्यो ७० सीतलप्रसादजीको जो पहलीवार देखा तो फिर न भूला।
उस बोरिया नशींका' दिलीमें मुरीद हूँ। जिसके रियाज़ों जुहदमें एरिया न हो ।
--अज्ञात
सन् १९१६ मे रौलटऐक्ट विरोधी आन्दोलनके फलस्वरूप अध्ययन के बन्धनको तोडकर सन् २० मे मै दिल्ली चला आया। उसी वर्ष ब्रह्मचारीजीने दिल्लीके धर्मपुरेमे चातुर्मास किया। भूआजीने रातको आदेश दिया कि प्रात काल ५ वजे ब्रह्मचारीजीको आहारके लिए निमन्त्रण दे आना, निमन्त्रण विधि समझाकर यह भी चेतावनी दे दी कि "कही ऐसा न हो कि दूसरा व्यक्ति तुमसे पहले ही निमन्त्रण दे जाय और तुम मुंह ताकते ही रह जाओ।"
ब्रह्मचारीजीके चरणरज पडनेसे घर कितना पवित्र होगा, आहार देनेसे कौन-सा पुण्य वन्ध होगा, उपदेश-श्रवणसे कितनी निर्जरा होगी
और कितनी देर सवर रहेगा--यह लेखा तो भूआजीके पास रहा होगा, मगर अपनेको तो वचपनमे देखे हुए उन्ही ब्रह्मचारीजीके पुन दर्शनको लालसा और निमन्त्रण देनेमे पराजयकी आशकाने उद्विग्न-सा कर दिया, बोला
"यदि ऐसी बात है तो मैं वहाँ अभी जा बैठता हूँ, अन्दर किसीको घुसते देखूगा तो उससे पहले मै निमन्त्रण दे दूंगा।"
भूमाजी मेरे मनोभावको न समझ कर स्नेहसे वोली-"नही, वन्ने । (दूल्हा) अभीसे जानेकी क्या जरूरत है । सवेरे-सवेरे उठकर चले जाना।"
१ बोरिया अथवा चटाई पर बैठा हुआ वपस्वी। २ व्रत और 'त्यागमे । ३ बनावटको गन्ध ।