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जैन-जागरणके अग्रदूत
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और यशस्वी सम्पादक भाई लक्ष्मीचन्द्रजीकी सम्मति से निश्चय हुआ कि ये सस्मरण निम्नलिखित चार भागोमे प्रकाशित किये जाये ---
प्रथम भाग में - पहली पीढीके उन दिवगत और वर्तमान वयोवृद्ध दि० जैन कुलोत्पन्न विशिष्ट व्यक्तियोके सस्मरण एव परिचय दिये जायें जो वीसवी शताब्दी के पूर्व या प्रारम्भमे समाज सेवाकी ओर अग्रसर हुए ।
द्वितीय भाग में दूसरी पीढीके उन महानुभावोका उल्लेख रहे, जो १६२० के बाद कार्य-क्षेत्रमें आये ।
तृतीय- चतुर्थ भाग - श्वेताम्बर - स्थानकवासी जैन प्रमुखोके परिचय १९०१ से १९५२ तकके दिये जाये ।
इस निर्णयके अनुसार प्रथम भागकी जो तालिका बनी, उन सबपर किसी एक व्यक्ति द्वारा लिखा जाना कतई असम्भव और उपहासास्पद प्रतीत हुआ । अत निश्चय हुआ कि प्रत्येक व्यक्तिका सस्मरण एव परिचय सम्वन्धित और अधिकारी महानुभावोसे लिखाये जायें और afar -से-अधिक जानकारी दी जाय, ताकि पुस्तक इतिहास और जीवनीका काम भी दे सके ।
जितना मैं लिख सकता था, मैने लिखा, अनुनय-विनय करके जितना लिखवा सकता था, लिखवाया । जीवन चरित्रो, अभिनन्दन ग्रन्थो और पत्र-पत्रिकाओसे जो मिल सका, चयन किया । मेरे निवेदनको मान देकर -
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महात्मा भगवानदीनजी, भाई प्रभाकरजी, श्री खुगालचन्द्रजी गोरावाला, प० कैलाशचन्द्रजी शास्त्री, ज्योतिषाचार्य प० नेमिचन्द्रजी, प० नाथूराम जी प्रेमी, प० रूपचन्द्रजी गार्गीय, श्री कौशलप्रसादजी, गुलाबचन्द्रजी टोया, प० हरनाथ द्विवेदी, श्री हुकमचन्द्रजी बुखारिया, श्रीमती कुन्या देवी जैनने सस्मरण एव परिचय भेजने की कृपा की है । इन्हीके लेखो से पुस्तक में निखार आया है, और इन्हीके सौजन्यसे पुस्तक अपने वास्तविक उद्देश्य की पूर्ति कर सकी है ।
ढालमियानगर ( बिहार )
श्र० प्र० गोयलीय
५ जनवरी १९५२