________________
जैन - जागरणके अग्रदूत
४३४
इस नश्वर गरीरमें हमारे साथ नही है, मगर उनकी आत्मा, ऐसा मालूम होता है कि हमारे चारो तरफ मँडरा रही है । जिस दस्सापूजा-प्रक्षालकी अभिलाषाको लेकर वह खडवेसे आये थे और आते ही जिसमे वह जुट गये थे, क्या वह कार्य पूरा करके हम उनको इस अभिलाषाको पूर्ण करके उनकी आत्माको शान्ति प्रदान कर सकेंगे ? १
श्रा श्रन्दलीब मिलके करें श्राहो जारियां । तू हाय गुल पुकार पुकारूँ मैं हाय दिल ||
-- जैनसन्देश, आगरा
१९३८
१ यह मेरा लिखा संस्मरण जैन सन्देशमें एक नामके लोभी सज्जनने अपने नामसे छपवा दिया था ।
-गोयलीय