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मध्यप्रदेश इसका समाचार विजल नरेश के पास पहुँचा। वे रामय्य पर बहुत कुपित हुए । पर रामय्य ने वही अद्भुत चमत्कार उनके सामने भी कर दिखाया। तब तो राजा को रामय्य के देव में विश्वास हो गया, और उन्होंने जैनियों को दरवार से अलग कर उन्हें शैवों के साथ झगड़ा न करने की सख्त ताकीद कर दी।
यह मध्यप्रान्त में जैनधर्म के -हास और शैव धर्म की वृद्धि का, हिन्दू पुराणों के अनुसार, वृत्तान्त है। इसमें सत्य तो जो कुछ हो, पर इसमें संदेह नहीं कि इस समय से यहां और दक्षिण भारत में जैनधर्म को शवधर्म ने जर्जरित कर डाला। आगे मुसलमानी काल में भी इस धर्म की भारी क्षति हुई और उसे उन्नति का अवसर नहीं मिल सका । जैन धर्म राजाश्रय विहीन होकर क्षीण अवश्य हो गया, पर उसका सर्वथा लोप न हो सका। स्वयं कलचुरि-वंश में जैन धर्म का प्रभाव बना ही रहा । मध्यप्रान्त में जो जैन कलवार सहस्रों की संख्या में पाये जाते हैं, वे इन्हीं कलचुरियों की संतान है। अनेक भारी मन्दिर जो आजतक विद्यमान हैं वे प्रायः इसी गिरती के समय में निर्माण हुए हैं । जैनियों के मुख्य तीर्थ इस प्रान्त में बैतूल जिले में मुक्तागिरि, निमाड़ जिले में सिद्धवर-कूट और दमोह जिले में कुंडलपुर है। मुक्तागिरि, अपरनाम मेढागिरि, और सिद्धवरकूट सिद्ध-क्षेत्र हैं, जहां से प्राचीन काल में सैकड़ों मुनियों ने मोक्ष पद प्राप्त किया है। मुक्तागिरि में कुल अड़तालीस मन्दिर हैं जिनमें मूर्तियों पर विक्रम की चौदहवीं शताब्दि से लगाकर सत्तरहवीं शतान्दितक के उल्लेख हैं। इन मन्दिरों में पांच बहुत प्राचीन प्रतीत होते हैं, और सम्भवतः बारहवीं, तेरहवीं शताब्दि