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जैन इतिहास की पूर्व - पीठिका
स्थापित धर्मका पुनरुद्धार किया। ज्यों ज्यों हम ऐतिहासिक कालके समीप आते जाते हैं त्यो त्यो जैनधर्मके उद्धारकौका परिचय अनेक प्रमाणोंसे सिद्ध होने लगता है। बाइसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के विषयकी अनेक घटनाओं का समर्थन हिंदू पुराणोंसे होता है । तेइसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ तो अब ऐतिहालिक व्यक्ति माने ही जाने लगे है। इनके जीवन के सम्बन्धमे नागवंशी राजाओंका उल्लेख आता है । इस वंशके विषयपर ऐतिहासिक प्रकाश पड़ना प्रारम्भ हुआ है । चौवीसवे तीर्थंकर महावीरका समय तो जैन इतिहासकी कुंजी ही है। वैज्ञानिक इतिहासने धीरे धीरे महावीरकी ऐतिहासिकता स्वीकार करके क्रमसे पार्श्वनाथ तक जैन धर्मकी शृंखला ला जोड़ी है । आश्चर्य नहीं, इसी प्रकार वैज्ञानिक शोध से धीरे धीरे अन्य तीर्थकरोंके समयपर भी प्रकाश पड़े ।
जैन भूगोल
भारतवर्षका जो भूगोल - सम्बन्धी परिचय जैन पुराणोंमें दिया है वह भी स्थूल रूपसे आजकलके ज्ञानके अनुकूल ही है । भरतक्षेत्र हिमवत् पर्वतसे दक्षिणकी ओर स्थित है। इसकी दो मुख्य नदियां हैं। गंगा और सिंधु । वे दोनो नदियां हिमवत् पर्वत परके एक ही 'पद्म' नाम सरोवर से निकलती हैं। गंगा पूर्वकी ओर बहती हुई पूर्वीय समुद्र में गिरती है और सिन्धु पश्चिम की ओर बहती हुई पश्चिम समुद्र में गिरती है। कुलकरों और तीर्थकरों का जन्म गंगा और सिन्धुके वीचके प्रदेशोंमें ही हुआ था । यह वर्णन किसी प्रकार गलत नही कहा जासकता ।