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• परशुराम का वृत्तान्त । · ·
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सणी से १६में शान्तिनाथ तीर्थकर हुये, चो पहिले गृहवास में तो में चक्रवर्चि हुये, दीक्षा लेकर तीर्थकर हुए।
तिस पीछे हस्तिनापुर नगर में कुरुवंशी सूरनाम राजा उनकी श्रीराणी उनों का पुत्र कुंथुनाथ नामा गृहवास में वो छढे चक्रवर्चि हुए, दीक्षा ले १) तीर्थकर हुए।
तिस पीछे हस्तिनापुर में कुरुवंशी सुदर्शन नाम राजा, उन के देवी राणी से भरनाथ पुत्र गृहवास में तो सातमें चक्रवर्ति हुए, दीक्षा ले अठारवें तीर्थकर हुए।
अठारमें और उगणीसमें तीर्थंकर के मध्य में सुभूम नाम का पाठमां चक्रवर्ति हुआ, इस के समय में ही परशुराम हुआ, इन दोनों का वृत्तान्त बैनशास्त्रोक्त लिखता हूं, यह कथा योग शास्त्र में ऐसे लिखी है
वसंतपुर नाम नगर में जिसका कोई भी संबंधी नहीं ऐसा उच्छिन बंशी अग्निक नाम का एक लड़का था, वह सथवारे के साथ किसी देशांवर को जाता साथ भूल के किसी तापस के आश्रम में गया, तब कुलपति ने अपने पुत्रवत् रक्खा, उहाँ उस अग्निक ने बड़ा घोर तप करा, और बडा तेजस्वी हुआ, तब यमदग्नि वापसों में नाम से प्रसिद्ध हुआ, इस अवसर में एक जैनधर्मी, विधानर नाम का देवता और दूसरा तापसों का. भक्त धन्वंतरि नाम का देवता, ये दोनों देव परस्पर में विवाद करने लगे, उस में विश्वानर तो कहता है, अहंत का कहा धर्म प्रामाणिक है, और धन्वंतरी कहता है तापसों का धर्म प्रामाणिक है तब विश्वानर ने कहा, दोनों धर्म के गुरुओं की परीक्षा करलो, जिसमें जैनधर्म में तो जो जघन्य गुरु होय उसकी धैर्यता देखलो,तापस धर्मवालों में उत्कृष्ट से उत्कृष्ट की। उस अवसर में मिथिला नगरी का पत्ररथ राजा नया ही जिन धर्मी हो. कर भावयति हुआ था, वह चंपा नगरी गुरु पास दीक्षा लेने जाता था, 'उसको उन दोनों देवतों ने देखा तब रास्ते में दुःख देने वाले करड़े कंकर