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श्रीजैन दिग्विजय पताका (सत्यासत्यनिर्णय ) ।
महापापी, तेरे मुख देखने से ही पाप लगता है, सब ने मिल के देश से बाहिर निकाल दिया, तब महाकाल असुर, हे रावण, उसका सहायक हुआ !
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रावण ने पूछा, महाकाल असुर कोण था ? तब नारद कहता है, है रावण, इहां नजदीक ही चरणायुगल नाम का नगर है, उस में प्रयोधन नाम राजा था, उसकी दिति नाम की भार्या उन दोनों से सुलसा नाम पुत्री उत्पन्न हुई, रूप लावण्य युक्त योवन प्राप्त हुई, सुलसा का स्वयम्बर पिता ने रचा, सर्व राजाओं को बुलाये, उस राजाओं में सगर राजा अधिक था, उस सगर की मंदोदरी नाम की स्वास की द्वार पालिका, सगर की आज्ञा से प्रतिदिन राजा भयोधन के आवास में जाती थी, एक दिन दिति और सुलसा घर के बाग में कदली गृह में गई, उस अवसर पर मंदोदरी भी उनों के पीछे २ वहां जा पहुंची, माता पुत्री की बा सुनने उहां प्रच्छन खड़ी रही, दिति सुलसा को कहती है, हे पुत्री मेरे मन में ये चिन्ता है वह मिटानी तेरे आधीन है, प्रथम श्री ऋषभ स्वामी के भरत और बाहुबली दो पुत्र हुये, भरत का, सूर्य यश जिस से सूर्य वंश चला, बाहुबलि का चंद्रयश, जिस से चंद्रवंश चला, चंद्रवंश में मेरा भाई तृणबिंदु हुआ, और सूर्यवंश में तेरा पिता राजा अयोधन है, अयोधन की बहिन सत्ययशा, तृणविंदु की भार्या से मधुपिंगल नामा उत्पन्न मेरा भतीजा है, इस लिए हे बेटी, मैं तुझे उस मधुपिंगल को देना चाहती हूं, तूं न मालुम स्वयंबर में किस राजा को वरेगी, तब सुलसा ने माता का कहना स्वीकार करा, ये वार्त्ता सुख मंदोदरी आकर राजा सगर को सर्व स्वरूप निवेदन करा, तब सगर राजा अपने विश्वभूति पुरोहित जो बड़ा कवि था उस से कहा, उस ने राजों के लक्षणों की संहिता बनाई, उस में सगर के तो शुभ लक्षण लिखा, और मधुपिंगल के अशुभ लक्ष्य लिखा, उस पुस्तक को संदूक में बंधकर रख छोड़ा, जब सब राजा स्वयंबर में आकर बैठे, तब सगर की आज्ञा से विश्वभूति पंडित वो पुस्तक निकाल कर बोला, जो राज्यचिन्ह रहित राजा इस सभा में होय, उन को बातो
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