________________
[ ड ] होने रूप आश्चर्यजनक वार्ता यह प्रकट होगी, पीछे २३वें तीर्थकर पार्श्व होंगे उन का नाम सर्वस्वमत परमत विख्यात होगा, तदनंतर मरीचि तेरा पुत्र जिसने गेरू रंगित पूर्वोक्त वेष उत्पन्न किया उसका जीव २४ वां महावीर नाम का तीर्थकर होगा वह साढा पचवीस देश में स्व उपदेश से सौ राजाओं को जिनधर्मी करेगा। . गोतम गोत्रीय आदि ४४०० ब्राह्मण जीव हवन करते हुओं को सत्य, अहिंसा परम धर्म को स्याद्वाद न्याय से प्रतिबोध देकर एक दिन में जैनी दीक्षा साधुव्रत देगा उनके उपदेश से प्रायः हिंसाजनक यज्ञ वेदोक्त कर्मकांड भारत से दूर होगा । ब्रामण भी प्रायः पुराणों का आश्रय लेंगे। आजीविका के लिये धर्म के बहाने से अनेक मार्ग उत्पन्न करेंगे इत्यादि भावी फल संपूर्ण ।
भरत चक्रवर्ती को भगवान् ने कथन किया भावी फल यह बहुत है । इस जगह लिखने के लिये स्थान नहीं । सर्व तीर्थकर केवल ज्ञानी का तथा सामान्य केवल ज्ञानी का तत्वमय उपदेश एक रूप है, केवलज्ञानी जब तक होते रहे तब तक उन का कहा विज्ञान मुनिजन कंठाग्र अपने २ क्षयोपशमानुसार धारते रहे । जब काल दोष से शक्ति न्यून होती गई तब से जिनोक्त ज्ञान आचार्यों ने पुस्तक रूप से लिखा जो परंपरागत याद रहा था, उस में जो मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग था उस को आवश्यक समझ साधु जन के चरण के लिये आगम नाम रूप से लिखा, अन्य को पयन्ना (प्रकरण) रूप से लिखा। एक कोटि संख्या प्रमाण जैनागम विक्रम राजा के पांचवी शताब्दी में २ पूर्व की विधा पुस्तक रूप लिखे गये वे १० नाम से विख्यात हुए । अनुयोग द्वार सूत्र में वे १० नाम लिखे है (१) सुत्ते (२) गथे (३) पयन्ने (8) आगम इत्यादि । इसलिए सूत्र अंथ प्रकीर्ण आगम एकार्थ वाचक होनेसे सर्व केवलज्ञानी के कथनानुसारहै, जिसर समय जिस आचार्यादि ने उन कैवल्योक्त वचनों की एक संकलना करी वह ग्रंथ उस संकलना कारक के नामसे प्रसिद्धिमें विख्यातहुआ लेकिन वह ग्रंथ ज्ञान उस कर्चा का नहीं, वह सर्व ज्ञान केवली कथित ही जिन धर्मा प्रमाणीक पुरुषों ने लिखा है । (दृष्टांत) जैसे मै ने संग्रह कर्ता ने यह जैन दिग्विजय प्रताका का संग्रह कियाहै इसको तत्व के अनभिज्ञ मेरा रचाहुआ कहेंगे, लेकिन तत्वदृष्टिवाले कदापि ऐसा नहीं कहेंगे । मुझ अल्पज्ञ का ऐसा क्या सामर्थ्य है जो मैं मनोक्त कल्पना करूं, सर्वथा नहीं, परंपरागत शास्त्रानुसार अनेक ग्रंथ में से