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श्रीजैनदिग्विजय पताका (सत्यासत्यनिर्णय)।
और मंगल करने समर्थ नहीं हुआ ऐसे का ध्यान स्मरण पूजन कर हम किस प्रकार विघ्न से निवृत्ति पासकते हैं । इस प्रकार कर्म से परतन्त्र जो दिन रात पर्यटन करने वाला है वह कदापि परमेश्वर नहीं जिसने अनेक कुमारी कन्याओं का ब्रह्मवत खण्डन कर अब्रह्म सेवन करा ऐसा कामी हमको कैसे शान्तिपद प्राप्त कर सकता है, इत्यादि लक्षण परमेश्वर के नहीं, कई कहते हैं कि पवित्रात्मा परमेश्वर ने एक स्त्री कुमारी से विषय किया, उस के पुत्र हुआ, पिता, पुत्र, पवित्रात्मा, देव परमेश्वर के ३ भेद हैं। शरीरधारी बिना स्त्री से विषय निराकार सच्चिदानन्द परमेश्वर ने कैसे करा, वीर्यपात विना पुत्र कैसे हो सकता है? सायन्स से यह विरुद्ध वार्ता है, फिर लिखा है कि एक पुरुष से ईश्वर ने कुश्ती करी और गऊ के वच्छ का मांस और रोटी खाई, मांस रोटी जों खाता है वह देहधारी है,पाखाने मी जाता है, मलमूत्रादि युक्त सामान्य मनुष्य की तरह सप्तधातुनिष्पन्न शरीरवाला है,ऐसा रागी, द्वेपी ईश्वर कदापि नहीं होसकता । ईश्वर होकर स्त्री से मैथुन करे, ऐसे को ईश्वर मानने वालों की बुद्धि की कहां तक प्रशंसा करी जाय । ईश्वर का पुत्र एक दिन चलते २ थक गया, थकने वाले को समर्थ प्रभु कौन कह सकता है, ईश्वर में तो सर्व प्रकार का अनंत बल होता है इसलिये स्ते चलते थकने वाला ईश्वर वा ईश्वर का पुत्र नहीं । एकदा ईश्वर के पुत्र को गुलर फल खाने की इच्छा हुई जब वृक्ष के समीप गया तो वृक्ष सूखा पाया तब क्रोध से श्राप दिया जा तेरा फल मनुष्य नहीं खावेगा, अब दुद्धिवान् विचार सकते हैं यदि ज्ञानवान होता तो प्रथम से जान सकता कि वृक्ष सूखा है तो फिर जाता ही क्यों ? इसलिये अज्ञानी ईश्वर वा ईश्वर का पुत्र कदापि नहीं हो सकता। वृक्ष को श्राप देना कितनी अज्ञानता है, वृक्ष कुछ जानकर सूखा नहीं था कि ईश्वर का पुत्र आवेगा उसके लिए मैं सूख जाऊं। अव्यक्त चेतन को श्राप देने वाला अज्ञानी सिद्ध होता है, ऐसा ईश्वर वा ईश्वर का पुत्र कदापि नहीं हो सकता है। फिर ईश्वर का पुत्र करामात दिखलाने खाली घड़ों में मद्य भर के दिखलाया, बाजीगर इस वखत खाली उसतावा दिखलाके फिर फूंक से पानी भरके दिखलाता है जैसे बाजीगरी का खेल । अपनी ईश्वरता मद्य पीने वालों में प्रगट करने वाला कदापि ईश्वर वा ईश्वर का