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कहते हैं, जो क्रम क्रम से होती हैं । गुणो का और उनके समुदायरूप द्रव्यका सदा ध्रौव्य या अविनाशीपना रहता है, किंतु पर्यायों में उत्पाद व्यय होता रहता है।
ऐसे मूल द्रव्य इस लोकमें छ: प्रकार के हैं । जीव, पुद्गत, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाश और काय, इनमें जीव चेतन है, शेष पांच अचेतन हैं।
२४. द्रव्यों के सामान्यगुण इन छःप्रकार के द्रव्योंमें कुछ गुण ऐसे है जो हर एक द्रव्य में पाये जाते है । उनको सामान्य गुण (Common qualities) कहते हैं। उन में से प्रसिद्ध निम्न छ हैं:
(१) अस्तित्वगुण-जिस से द्रव्य अपनी सत्ता सदा रखता है।
(२) वस्तुत्वगुण-जिस शक्ति के निमित्त से द्रव्य में अनेक गुण व पर्याय निवास करते हैं।
(३) द्रव्यत्वगुण-जिससे द्रव्य परिणमन किया करता है । या अवस्थायें बदलता है । , (४) प्रदेशत्वगुण-जिससे द्रव्य कोई न कोई आकार रखता है।
+दवं सल्लक्खणिय उप्पाद व्ययधुवत्त संजुत्तं । गुण पज्ज वा जंतं भगति सवराहू ॥१०॥
(पंचास्तिकाय) ___ भावार्थ-द्रव्य का लक्षण सत् है सो उत्पाद, व्यय, ध्रुव पनेकर सहित है । उसोको गुणपर्यायवान् सर्व देव कहते हैं।