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________________ बढ़ते रहते हैं व फलते फूलते रहते है तब तक ये सजीव या सचित कहलाते हैं, जब ये सूख जाते हैं या हवा न पाकर मुरझा जाते है तब ये अजीव और अचित कहलाते हैं । खान की व खेत की गीली मिट्टी, कुए का पानी आदि सचित हैं । सूखी मिट्टी, गर्म पानी अचित हैं। वर्तमान सायंस ने पृथ्वी व बनस्पति ( Vegetable ) में जीवपने की सिद्धि करदी है । अभी तीन में नहीं की है सो यदि विज्ञान की उन्नति हुई तो इनमें भी प्रमाणित हो जायगी । जैन सिद्धान्त जो कहता है वह इस तरह पर है कि इनके चार प्राण होते है-१ स्पर्शन इन्द्रिय जिससे छूकर जानते हैं, १ काय बल, १ आयु, १ श्वासोवास।. २.हीन्द्रिय जीव-जैसे लट, शङ्ख, कौड़ी आदि। इनके छ: प्राण होते है । १ रसनाइन्द्रिय और १ बच्चनवल अधिक हो जाता है। ३. तेन्द्रिय जीव-जैसे चींटी, खटमल आदि । इनके सात प्राण हैं। घ्राण इन्द्रिय अधिक होजाती है। । ४. चौइन्द्रिय जीव-जैसे मक्खी, भौरा, पतङ्ग आदि । 'इनके पाठ प्राण हैं । चक्षु इन्द्रिय अधिक होजाती है। ५. पचेन्द्रिय मन रहित-जैसे समुद्रके कोई २ जातिके सर्प । इनके प्राण होते है। एक कर्ण इन्द्रिय अधिक हो जाती है। ६. पंचेन्द्रिय मन सहित-जैले हिरण, गाय, भैंस, बकरा, कबूतर, काक, चील, मच्छ, सब श्रादमी, नारकी व देव। इनके १० प्राण होते है। एक मन बल अधिक हो जाता है।
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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