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हैं। जैसे -सोने की अंगूठी तोड़कर वाली बनाई जावे, तब क्योंकि सोना वही हैं, इससे वह नित्य है, परंतु अंगूठी बदल कर बाली बन गई, इससे अवस्था क्षणिक है । यहाँ दोनों बातें एक समय में ही मौजूद हैं ।
( ४ ) क्या हम दोनों को एक साथ नहीं कह सकते ? उत्तर- हाँ, शब्दों में शक्ति न होने से दोनों को एक साथ नहीं कह सकते, इसी से श्रात्मा श्रवक्तय स्वरूप है ^ ( ५ ) क्या अवक्तव्य होते हुए नित्य है ? उत्तर- हाँ, जिस समय अवक्तव्य है उसी समय नित्य भी है ।
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(६) क्या अवक्तव्य होते हुए अनित्य है ? उत्तर - हाँ, जिस समय वक्तव्य है उसी समय श्रनित्य भी है।
( ७ ) क्या जिस समय श्रवतव्य है उस समय नित्य अनित्य दोनों हैं ? उत्तर -- हॉ. जिस समय अवक्तव्य है उसी समय नित्य अनित्य भी है।
इसी को इन शब्दों में कहेंगे
( १ ) स्यात् श्रात्मा नित्य स्वमात्रः ( २ ) स्यात् श्रनित्य स्वभावः ( ३ ) स्यात् नित्यानित्य स्वभावः ( ४ ) स्यात् श्रवक्तव्य स्वभावः ( ५ ) स्यात् नित्य: अवक्तव्य स्वभावः (६) स्यात् अनित्यः अवक्तव्य स्वभावः ( ७ ) स्यात् नित्यानित्यः अवक्तव्य स्वभावः ।
जबतक स्याद्वाद से पदार्थ को न समझेंगे, तब तक हम पदार्थ को ठीक नही समझ सकते। यदि हम ऐसा कहें कि * वाक्येष्वनेकान्तद्योती गम्यम्प्रतिविशेषकः । स्यान्निपातोऽर्थं योगित्वात्सव केवलिनामपि ॥ १०३ ॥ स्याद्वाद सर्वथैकान्तत्यागात्किवृत्तचिद्विधिः ।