SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३७ ) हैं। जैसे -सोने की अंगूठी तोड़कर वाली बनाई जावे, तब क्योंकि सोना वही हैं, इससे वह नित्य है, परंतु अंगूठी बदल कर बाली बन गई, इससे अवस्था क्षणिक है । यहाँ दोनों बातें एक समय में ही मौजूद हैं । ( ४ ) क्या हम दोनों को एक साथ नहीं कह सकते ? उत्तर- हाँ, शब्दों में शक्ति न होने से दोनों को एक साथ नहीं कह सकते, इसी से श्रात्मा श्रवक्तय स्वरूप है ^ ( ५ ) क्या अवक्तव्य होते हुए नित्य है ? उत्तर- हाँ, जिस समय अवक्तव्य है उसी समय नित्य भी है । 1 (६) क्या अवक्तव्य होते हुए अनित्य है ? उत्तर - हाँ, जिस समय वक्तव्य है उसी समय श्रनित्य भी है। ( ७ ) क्या जिस समय श्रवतव्य है उस समय नित्य अनित्य दोनों हैं ? उत्तर -- हॉ. जिस समय अवक्तव्य है उसी समय नित्य अनित्य भी है। इसी को इन शब्दों में कहेंगे ( १ ) स्यात् श्रात्मा नित्य स्वमात्रः ( २ ) स्यात् श्रनित्य स्वभावः ( ३ ) स्यात् नित्यानित्य स्वभावः ( ४ ) स्यात् श्रवक्तव्य स्वभावः ( ५ ) स्यात् नित्य: अवक्तव्य स्वभावः (६) स्यात् अनित्यः अवक्तव्य स्वभावः ( ७ ) स्यात् नित्यानित्यः अवक्तव्य स्वभावः । जबतक स्याद्वाद से पदार्थ को न समझेंगे, तब तक हम पदार्थ को ठीक नही समझ सकते। यदि हम ऐसा कहें कि * वाक्येष्वनेकान्तद्योती गम्यम्प्रतिविशेषकः । स्यान्निपातोऽर्थं योगित्वात्सव केवलिनामपि ॥ १०३ ॥ स्याद्वाद सर्वथैकान्तत्यागात्किवृत्तचिद्विधिः ।
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy