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( ३६ ) आदि विरोधी सरीखे स्वभावों का धारक है । इनमें से हर एक दो स्वभावों को समझाने के लिये इस तरह कहेंगे
स्यात् अस्ति स्वभावः-अर्थात् किसी अपेक्षा से (अपने आत्मामई द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव या स्वरूप की दृष्टि से) आत्मा में अपनी सत्ता या मौजूदगी है।
स्यात नास्ति स्वभावः अर्थात् किसी अपेक्षा से (परद्रव्यों के द्रव्य क्षेत्रादि की दृष्टि से) आत्मा में पर द्रव्यों की असत्ता यानी गैर मौजूदगी है।
स्यात नित्य स्वभावः अर्थात् किसी अपेक्षा से (अपने द्रव्यपने और गुणों के सदा बने रहने के कारण ) आत्मा नित्य या अविनाशी स्वभाव है।
स्यात अनित्य स्वभावः अर्थात् अपनी अवस्थाओं के बदलने की अपेक्षा आत्मा अनित्य या क्षणिक स्वभाव है।
स्यात् एक स्वभावः अर्थात् आत्मा एक अखण्ड है, इस से एक स्वभाव है।
स्यात् अनेक स्वभावः अर्थात् आत्मा अनन्तगुणों को . सर्वांश रखता है, इस से अनेक स्वभाव है।
इन्हीं दो स्वभावों को समझाने के लिये सातभंग कहे जाते हैं, जो शिष्य के सात प्रश्नों के उत्तर है । जैसे:
(१) क्या आत्मा नित्य है ? उत्तर-हाँ! आत्मा सदा बना रहता है इस से नित्य है।
(२) क्या आत्मा अनित्य है ? उत्तर-हाँ! आत्मा अवस्थाओं को बदलता रहता है, इससे अनित्य भी है।
(३) क्या प्रात्मा नित्य अनित्य दोनों है ? उत्तर-हाँ! आत्मा एक समय में नित्य अनित्य दोनों स्वभावों को रखता