________________
( २४३ )
में सनत्कुमार महेन्द्र स्वर्ग हैं। फिर आधे आधे राजू में ६ युगल अर्थात् ब्रह्म ब्रह्मोत्तर, लांतव कापिष्ट, शुक्र महाशुक्र, सतार सहस्रार, श्रानत प्राणत, आरण अच्युत स्वर्ग हैं। ऐसे ६ राजू में १६ स्वर्ग हैं । फिर १ राजूमें है मैवेयक, ६ अनुदिश व पांच अनुत्तर विमान और सिद्धक्षेत्र हैं ।
( नकशा देखी ) १६ स्वर्गो में १२ कल्पवासी देव हैं । इन स्वर्गों में इन्द्रादि १० पदवियाँ हैं । इन में १२ इन्द्र होते है अर्थात् पहले चार स्वर्गों के चार इन्द्र नीचे के ८ के ४ और अन्त के चार के चार इन्द्र होते हैं। सोलह स्वर्ग के ऊपर २३ विमानों में श्रहमिन्द्र होते हैं । वे अपने विमान मेंसब बराबर के होते हैं। पांच अनुत्तर के नाम ये हैं--विजय, वैजयन्त जयन्त, अपराजित, सर्वार्थसिद्धि ।
इन में सर्व विमानों की संख्या इस तरह पर है :१ स्वर्ग में
CA
५-६
७-5
६-१०
११-१२
१३-१६
43
"
19
33
53
38
19
37
३ श्रधो नैवेयक में
35
३ मध्य
३२ लाख
२८ लाख
१२ लाख
८ लाख
४ लाख
५० हज़ार
४० हज़ार
६ हज़ार
७००
१११
१०७