________________
( २४०) व्यन्तर जातिके देव आठ प्रकार के होते हैं
किन्नर, किंपुरुष, महोरग, गंधर्व, यक्ष, राक्षस, भूत, पिशाच । इन में राक्षस जाति के देव पङ्क भाग में रहते हैं, शेष खरभाग में रहते हैं। बहुतसे व्यन्तर मध्यलोकमें भी रहते हैं । इन दोनों की जघन्य श्रायु दशहज़ार वर्ष की है तथा उन्कृष्ट श्रायु भवनवासी देवों की एक सागर व व्यन्तरों की एक पल्य होती है।
इन्ही दश प्रकार भवनवासी व आठ प्रकार व्यन्तरोंमें दो दो इन्द्र व दो दो प्रतीन्द्र होते हैं, जो राजा के समान हैं। इसी तरह ४० इन्द्र भवनवासीके व ३२ इन्द्र व्यन्तरोंके जानने चाहिये। भवनवासियों में असुरकुमारों का शरीर पञ्चीस धनुष, शेष का दश धनुष ऊँचा होता है। व्यन्तर देवों का शरीर भी दश धनुष ऊँचा होता है।
मध्यलोक पहली रत्नप्रभा पृथ्वी के खरभाग की पहली पृथ्वी चित्रा है। यह एक राजू लम्बा चौड़ा क्षेत्र है-इसमें अनेक महा द्वीप और समुद्र हैं। मुख्य महाद्वीपों और समुद्रोके नाम हैंजम्बूद्वीप, लवणोदधि, धातुकी द्वीप,कालोदधि,पुष्करवरद्वीप ध पुष्करवर समुद्र, वारुणीवर द्वीप व समुद्र, क्षारवर द्वीप व समुद्र, घृतवर द्वीप व समुद्र, क्षौद्रवर द्वीप व समुद्र, नंदीश्वर द्वीप समुद्र, अरुणवर द्वीप व समुद्र, अरुणाभासवर द्वीप व समुद्र, कुण्डलवर द्वीप व समुद्र, शङ्खवर द्वीप व समुद्र, रुचिकवर द्वीप व समुद्र, भुजगधर द्वीप व समुद्र,