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का निमित्त कारण मानकर अवश्य उसकी सत्ता स्वीकार करते हैं।
७. महावीर भगवान का ब्राह्मणी के यहां गर्भ में आना और इन्द्र के द्वारा गर्भ हरण कर त्रिशला के गर्भ में स्थापन करना, दिगम्बर जैनी इसे स्वीकार नहीं करते। त्रिशला के गर्भ में ही वे आये थे।
.श्री महावीर भगवानका विवाह हुआ था। दिगम्बर जैनी कहते हैं कि वे कुवारे ही रहे और तप धारण किया।
इत्यादि कुछ बातोंमें अन्तर पडा।सात तत्व,नौ पदार्थ, बाईस परीषह, पांच महाव्रत, आदि सर्व ही जैनी मानते हैं। श्री उमास्वामी महाराज सम्बत् ८१ में हुये हैं, उन्होंने जो तत्वार्थसूत्र रचा है, जिस की मान्यता दिगम्बरों में बहुत अधिक है, उसको श्वेताम्बरी भी मानते हैं । यही इस बातका . प्रमाण है कि उस समय भेद बहुत स्पष्ट नहीं हुआ था, पीछे से कुछ सूत्रों में परिवर्तन हुआ है।
इनके यहां बड़े प्रसिद्ध आचार्य १३ वीं शताब्दि में श्री हेमचन्द्र जी हुए हैं, जिन्होंने बहुत से संस्कृत में प्रन्थ रचे और राजा कुमारपाल जैन की सहायता से गुजरातमें धर्मका बहुत विस्तार किया । तब ही से श्वेताम्बरोंकी बहुत प्रसिद्धि हुई है। इन्ही में से स्थानकवासी या दांढिये १५ वीं शताब्दि में हुये है,जिन्होंने मूर्ति मानने का त्याग किया और जो सवन साधुओं को ही तीर्थकर के समान मान कर पूजते हैं। अन्तर यह है कि साधु लोग मलीन वस्त्र पहिनते और मुंह में पट्टी बांधते हैं, इस भाव से कि कोई कीट न चला जावे । भोजन नीच, ऊँच जो देवे उसी से ले लेते हैं।