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________________ ( १८४ ) भगवान को बिना ही पढ़े सब कला व विद्याऐं प्रगट थीं । भगवान ने तीस वर्ष तक की उम्र मन्द राग से धर्म साधते व शुभ ध्यान करते हुए बिताई । जब आप तीस वर्ष के हुए, तब पिताने विवाह के लिये कहा। उस समय अपनी ४२ वर्ष की ही श्रायु शेष जान कर प्रभु स्वयं ही विचारते २ वैरागी होगये और खंका नाम के वन में जाकर, मगसिर वढी १० को केश लोचकर नग्न हो साधु हो गए और वेले ( दो उपवास) का नियम लिया । पहला श्रहोर कूल नगर के राजा कूल ने कराया । प्रभु ने १२ वर्ष तप किया। इसी मध्यमें एक दर्फ भगवान उज्जयनी के वनमें ध्यान लगा रहे थे, वहां स्थाणु महादेवने उन्हें अपनी मंत्र विद्या से बहुत कष्ट दिये । अन्त में ध्यानमें निश्चल देख वह लज्जित हो गया और प्रभुका माहात्म्य देख महावीर नाम प्रसिद्ध किया । इस तरह वीर अतिवीर, महावीर, सन्मति और वर्धमान ऐसे पांच नाम प्रभु के प्रसिद्ध हुए । प्रभु नृभिका ग्राम के बाहर ऋजुकूला नदी के तट पर शाल वृक्ष के नीचे ध्यान कररहे थे, तब आप केवलज्ञानी हो कर अरहन्त पद में गए । समवशरण रचे जाने पर ६६ दिन तक जब उपदेश नहीं हुवा, तब इन्द्रने विचार किया कि कोई व्यक्ति यहाँ वाणी को धारण करने योग्य नहीं मालूम होता है । ज्ञान से विचार कर इन्द्र ने वृद्ध पुरुष का रूप रख राजगृही मे रहने वाले एक गौतम ब्राह्मण को भगवान का मुख्य गणधर होने की शक्ति रखने वाला जान, उसे भगवान के पास बुला लाने को चला। किन्तु यह समझ कर कि वह
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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