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(१०) का भाव न था। जव श्रीनेमिनाथ उधरं पहुंचे, तव पशुओं का करुण क्रन्दन और चीत्कार सुन व्याकुल हो उठे। पूछने पर जब उन्हें मालूम हुआ कि श्री कृष्ण ने मेरी शादी में आये म्लेच्छ अतिथियोंके सत्कारार्थ इनको इकाटा कराया है ? तभी उन्होंने विवाह न करने का निश्चय किया और तुरन्त पशुओं को बधन से छुडाकर स्वयं संसार से वैरागी होश्रावण सुदी ६ के दिन श्री गिरनार पर्वत के सहश्रान धन में जाकर दीक्षा धारण कर ली । ५६ दिन तक कठिन तपश्चरण करने से प्रभु को गिरनार पर्वत पर ही असौज सुदी १ के दिन केवलज्ञान हो गया। तब आप जीवन्मुक्त परमात्मा हो अरहन्त हो गये और धर्मोपदेश देते हुए विहार करने लगे।
आपके शिष्य १८००० मुनि थे, उनमें मुख्य वरदत्तत्रादि ११ गणधर थे। राजमती भी बिना विवाहे नेमिनाथ जी के लौटने पर संसार से उदास हो गई और वह भी आर्यिका के व्रत लेकर नेमिनाथ की शिष्या ४० हजार प्रायिकाओं में मुख्य हुई । श्री कृष्ण वलदेव अपनी २ रानियों सहित उपदेश सुनने को आये । तब कृष्ण की रुक्मिणी, सत्याभामा आदि पाठ पटरानियों ने प्रोर्यिकाके व्रत धार लिये भगवानने ६६ वह मास ४ दिन विहार किया। आप की आयु १००० वर्ष की थी, फिर एक मास श्री गिरनार पर्वत पर योग निरोध कर आषाढ़ सुदी ७ को मोक्ष पधारे। ७७. संक्षिप्त चरित्र श्री पार्श्वनाथ जी
श्रीपार्श्वनाथ भगवान का जीव अपने जन्म से दो जन्म पहिले प्रानन्द राजा थे। वह मुनिहो घोरतप करके व तीर्थकर