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________________ ( १५२ ) बचन कहना, बहुत बकवाद करना, बिना विचारे काम करना, व्यर्थ भोग उपभोग को एकत्र करना । इन तीन को गुणव्रत कहते हैं । ( ४ ) सामायिक नित्य तीन, दो व एक संध्या को धर्मध्यान करना - जैसा पहले तप श्रावश्यक में कहा जा चुका है। इसके निम्न पाँच अतीचार हैं उनको बचाना : - मनमें अशुभ विचार, अशुभ वचन कहना, अशुभ काय को वर्ताना, अनादर रखना, पाठ आदि भूल जाना । ( ५ ) प्रोषधोपवास-मास में २ अष्टमी, २ चौदस, इन चार दिन उपवास करना अथवा एक भुक्त करना व धर्मध्यान में समय बिताना । इसके पाँच प्रतीचार ये हैंबिना देखे व बिना झाड़े कोई वस्तु रखना, कोई वस्तु उठाना, चटाई आदि बिछाना, अनादर से करना, धर्म साधन की क्रियाओं को भुला देना । (६) भोगोपभोगपरिमाण - पाँचों इन्द्रियों के योग्य पदार्थों का नित्य परिमाण करना । गृहस्थों के लिये निम्न १७ तरह के नियम प्रसिद्ध हैं : १. भोजन कै दफ़े २ पानी भोजन सिवाय कै दफे ३. दूध दही घी शक्कर निमक तेल इन छः रसों में किस को त्याग ४ तेल उबटन के दफे ५. फूल सूंघना कै दफ़े ६. ताम्बूल खाना के दफे ७ सांसारिक गाना बजाना के दफ़ेम सांसारिक नृत्य देखना कै दफ़े ६. काम सेवन के दफ़े १०. स्नान कै दफे ११. वस्त्र कितने जोड़े १२. आभूषण कितने १३. बैठने के श्रासन कितने १४. सोने की शय्या कितनी १५. सवारी
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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