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लता करदी है। हिन्दूमत में मनुस्मृति के कई श्लोकों में मांसाहार का निपेध है। जैसे
नाकृत्वा प्राणिनां हिंसां मांसमुत्पद्यते क्वचित् । न च प्राणिवधः स्वर्ग्यस्तस्मान्मांसं विवर्जयेत् ॥ -श्लोक ४८ श्र० ५ अर्थात् - चिना प्राणियों के वध किये मांस नहीं होता, वध करना स्वर्ग का कारण नहीं, इससे मांस न खावे; परन्तु दुःख के साथ कहना पड़ता है कि करोड़ों हिन्दु मांस खाते हैं. क्योंकि उसी मनुस्मृति में अन्यत्र मांसाहार की पुष्टि भी हैं । ईसाइयों के यहाँ नीचे के वाक्यों में मांस खाना निषिद्ध बताया है, तब भी लाखों में दो चार ही मांस के त्यागी हैं -
Behold I have given you every herb, bearing seed, which is upon the face of all the earth, and every tree in which is the fruit of a tree yieldingseed, to you it shall be meat (Genesis chap. 129) भावार्थ- देखो मैने तुमको बीज से पैदा होने वाले हर एक लागपात जो पृथ्वी भर पर दीखते हैं और फल देने वाले वृक्ष जिनसे बीज भी मिलते हैं, दिये हैं । यही तुम्हारे लिये भोजन होगा। और भी कहा है
St. Panl says – It is good neither to eat flesh not to drink wine, nor anything whereby thy bro ther stumbleth or is made weak. (Romans 14-21) सेन्टपाल कहते हैं कि-न मांस खाना ठीक है, न शराब ना ठीक है और न कोई ऐसा काम करना चाहिये जिस से भाई कष्ट में पड़े या निर्बल हो । (रोमन्स १४-२१)