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________________ (१४१) यदि कोई छोटा मन्त्र जपना चाहे तो नीचे लिखे मंत्र भी जपे जा सकते हैं। १ अरहन्त सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्योनमः (१६ अक्षर) २. अरहन्त सिद्ध (६ अक्षर। ३ असि पा उसा =५ अक्षर ४. अरहन्त-४ अक्षर ५. सिद्ध-२ अक्षर ६. ॐ एक अक्षर। ॐ पाँच परमेष्ठी का वाचक है, क्योंकि इनके प्रथम अक्षरो से बना है। अरहन्त का अ, सिद्ध को अशरीर कहते हैं उसका अ, प्राचार्य का पा उपाध्याय का उ, साधु को मुनि कहते है अतः इसका प्रथम अक्षर म् मिलकर ओम् ॐ बना है। इस मन्त्र के प्रभाव से परिणाम निर्मल हो जाते है । बहुत से प्राणी मरते समय णमोकार मन्त्र सुनकर निर्मल भाषों से शुम गति में चले जाते हैं। ६८. मंत्र प्रभाव की कथा श्रीरामचन्द्र मुमुक्षकृत पुण्याश्रव कथा कोश में इस महामन्त्र की अनेक कथाएँ है उन में से एक कथा यहाँ दी जाती है-- बनारस के राजा अकम्पन की कन्या सुलोचना विंध्य. पुर के राजा विध्यकीर्ति की कन्या विध्यश्रीके साथ विद्याध्य. यन करती थी। एक दफे फूलों को चुनते हुए विध्यधी को एक नाग ने काटा. उसी समय सुलोचना ने एमोकार मन्त्र सुनाया जिसके प्रभाव से वह मर कर गङ्गा देवी उत्पन्न हुई। इस मन्त्र के द्वारा भावों में शांति आने से शुभ गति में जीव चला जाता है।
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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